scriptदशकों बाद भी बही का क्रेज वही | Even after decades, the craze of the book is the same tradition of buy | Patrika News
जोधपुर

दशकों बाद भी बही का क्रेज वही

बहीखाता लेखन एक कला भी

जोधपुरOct 29, 2021 / 11:44 am

Nandkishor Sharma

दशकों बाद भी बही का क्रेज वही

दशकों बाद भी बही का क्रेज वही

जोधपुर. व्यवसायिक लेनदेन का हिसाब रखने वाले परम्परागत बही खाते का वर्चस्व सदियों बाद आज भी जस का तस है। कम्प्यूटर क्रांति के बावजूद दीपावली पर परम्परागत रूप से बही खातों का ही पूजन कर नई बहियां रखने का रिवाज है। कारोबार छोटा या हो बड़ा इससे संबंधित हर क्षेत्र में कम्प्यूटर की महत्ता बढ़ी जरूर है लेकिन कम्प्यूटर की तमाम सुविधाओं के बावजूद पुरानी बही खाता प्रणाली की साख आज भी बरकरार है। छोटे व्यवसायी, व्यापारी के अलावा बड़े उद्यमी सभी दिवाली पर बहियों का पूजन कर नए खाते की शुरुआत करते है। दीपावली से पूर्व आने वाले पुष्य नक्षत्र को व्यवसायी नए बहीखाते खरीदने की परम्परा का निर्वहन करते है।
पाई पाई का हिसाब मिलान

लाल कपड़े में सिली बही बही में लेन देन करने वाले लोगों को पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे लेखों का हिसाब मिल जाता है। सेठ साहूकारों ने अपने पूर्वजों की परम्परा को अक्षुण्ण बनाए रखा है। इन बहियों में माल की आवक जावक सहित पाई पाई का हिसाब मिलान किया जाता है। विश्वास की परम्पराबही खातों में दर्ज लेन देन अब भी मान्य है। इसके लिए किसी सबूत की आवश्यकता नहीं होती। जो बही में लिखा हे उसे चुकता करने में कोई समझौता नहीं।
बहीखाता लेखन एक कला भी

बही लेखन एक परम्परा के साथ कला भी है। यही कारण है कि औद्योगिक व व्यावसायिक संस्थानों में बही खाता लेखन करने वाले मुनीम को चार्टड एकाउन्टेंट के समकक्ष सम्मान दिया जाता है। व्यापार और व्यापारी को दिशा निर्देश व सलाह के साथ मुनीम की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। दिवाली पर शुभ मुहूर्त में बहियों में लेखा प्रारंभ व्यापारी की प्रथम प्राथमिकता होती है। प्रतिष्ठानों में कम्प्यूटर के बावजूद बहियों में लेखन बदस्तूर जारी है। जोधपुर में बही निर्माता और पीढिय़ों से बही व्यवसाय की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले वाले व्यवसायी अव नाम मात्र ही बचे है।

Hindi News/ Jodhpur / दशकों बाद भी बही का क्रेज वही

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो