पत्रिका से बातचीत में यूएसए बोइसी निवासी व माइक्रो चिप्स निर्माता इंजीनियर दंपत्ति कुणाल व अपर्णा ने बताया कि लंबे अर्से से उनको एक और पुत्री की चाहत थी जो आज पूरी हुई है। नवजीवन संस्थान कन्याओं की प्रगति और सर्वांगीण विकास के लिए समर्पित है। हमारा यह मानना है कि बालिकाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। यदि कन्याएं सुरक्षित रहेगी तो हमारे भारतीय संस्कार और संसार भी सुरक्षित रहेगा।
नवजीवन संस्थान में उन माताओं के बच्चों का लालन-पालन किया जाता है जो किसी अज्ञात मजबूरी में अपने बच्चों को सड़कों के किनारे, निर्जन स्थल अथवा समाज की मर्यादा के डर से गंदी नालियों में फैंक देती है। संस्थान उन फेंके हुए निराश्रित शिशुओं को 1989 से अब तक करीब 1100 से अधिक बच्चों का पुनर्वास कर नया जीवन दिया जा चुका है।
अविवाहित माताएं अथवा उनके संबंधी नवजात शिशुओं को संस्थान में गुप्त रूप से छोड़ सके इसके लिए संस्थान के सामने अहाते में एक इलेक्ट्रॉनिक विशेष पालना स्थापित किया गया है। नवजात शिशु के पालने में पहुंचते ही संस्थान में घंटी बजने लगती है। बच्चे को संस्था में लाने के बाद उसका मेडिकल चेकअप और रजिस्टर में इन्द्राज किया जाता है।
जोधपुर के चौपासनी हाउसिंग बोर्ड स्थित नवजीवन संस्थान के शिशुगृह में पालन पोषण व्यवस्थाओं एवं समर्पण भाव से सेवा और सुरक्षित वातावरण के कारण ‘ कारा की वेबसाइट पर गोद लेने वाले दंपत्ति सर्वाधिक प्राथमिकता देते है। कोविड में एक भी मामला यहां नहीं होना इस बात का सबूत है।
डॉ. बीएल सारस्वत, सहायक निदेशक, बाल अधिकारिता विभाग जोधपुर