आज भी प्यास बुझाती है बावड़ी
अचलनाथ शिवालय में राव गांगा ने एक बावड़ी का निर्माण भी करवाया जो आज भी गांगा बावड़ी कहलाती हैं। जलदाय विभाग की ओर से बावड़ी का पानी आज भी परकोटे के भीतर शहरवासियों की प्यास बुझाने में प्रयुक्त किया जा रहा है।51 फीट का शिखर
अचलनाथ मंदिर का शिखर 51 फीट विशाल है जो संगमरमर से निर्मित है। मंदिर शिखर पर स्थापित कलश अष्टधातु से निर्मित है। मंदिर के ब्रह्मलीन मंदिर के महंत नेपाली बाबा ने 1990 में मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू करवाया। नेपाली बाबा का मूल नाम दरअसल गौरीशंकर था जो नेपाल से जोधपुर आए थे। सदैव मौन रहने के कारण उन्हें मौनी बाबा भी कहा जाता था। नेपाली बाबा ने मंदिर जीर्णोद्धार की योजना बनाई और विकास कार्य पूरा होने के बाद 28 अप्रेल
1995 से 7 मई तक 11 दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान हुए जिसमें विभिन्न अखाड़ों के महंत शामिल हुए। वर्तमान में पंचदशनाम जूना अखाड़ा के मुनिश्वर गिरि मंदिर के महंत है जो सिद्धनाथ धाम एवं अचलनाथ
मंदिर का संचालन करते है।
मंदिर में दो शिवलिंग
मुख्य गर्भगृह में दांयी ओर अचलनाथ की प्राचीन प्रतिमा और बांयी ओर नर्बदेश्वर शिवलिंग है। अचलानाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के दौरान नर्बदेश्वर शिवलिंग एवं जगदम्बा पार्वती की प्रतिमा को स्थापित किया गया।
क्या है मंदिर का इतिहास
मंदिर के वर्तमान महंत मुनेश्वरगिरी ने बताया कि मंदिर हरिद्वार के पंचदशनाम जूना अखाड़ा के अधीन है। जोधपुर नगर की स्थापना के समय कटला बाजार क्षेत्र जाळ के वृक्षों से आच्छादित क्षेत्र था। एक बार कुछ नागा साधुओं का समूह घूमते हुए वहां पहुंचा और धूणा बनाकर रहने लगे। एक दिन साधुओं ने देखा कि एक
गाय रेत के ढेर पर खड़ी है और उसके थनों से दूध बह रहा हैं। साधुओं ने जब उस स्थान पर खुदाई की तो शिवलिंग निकला। नागा साधु वहीं पर शिवलिंग की नित्य पूजा करने लगे। जब नागा बाबाओं में महंत परम्परा प्रारंभ हुई तो वे स्थाई रूप से वहां आवास करने लगे। राव गांगा को पुत्र प्राप्ति होने के बाद राव गांगा की रानी नानकदेवी ने मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर को तत्कालीन शासकों की ओर से मेड़ता तहसील में स्थित समदोलाव कला जागीर दी
गई।
यूँ पड़ा नाम अचलनाथ
राव गांगा ने टीले पर स्थापित शिवलिंग को अन्यत्र स्थापित करने का आग्रह किया लेकिन अनेक प्रयास के बावजूद शिवलिंग हिलाया तक नहीं जा सका। तभी से शिवालय का नाम अचलनाथ पड़ा। श्रावण मास, शिवरात्रि एवं मंदिर के पाटोत्सव के दौरान मंदिर में विशेष धार्मिक आयोजन एवं शृंगार किया जाता है। हाल ही में मंदिर के 500 वें पाटोत्सव पर विभिन्न देव विग्रह प्रतिष्ठित किए गए।