क्षेत्र के बुजुर्गों के अनुसार सत्तर के दशक में जब फोन और सोशल मीडिया जैसी सुविधाएं नहीं थी और शहर का विस्तार भी नहीं हुआ था तब युवा वर्ग बड़े बुजुर्गों की मर्यादाओं का विशेष ख्याल रखते थे । भीतरी शहर के ही सगाई हो चुके कुछ युवा गणपति दर्शन के दौरान अपनी मंगेतर से कुछ क्षण बतियाने के लिए बुधवार को मंदिर पहुंचते थे ।
अंतिम छोर पर स्थित मंदिर की संकरी गली में आस – पड़ौस में भी कोई और निवास नहीं होने से किसी बड़े बुजुर्ग की नजरें भी नहीं पड़ती और बड़ों की मर्यादाओं का भी पालन हो जाता था । यह बात आस – पास के कुछ हथाईबाजों के गले नहीं उतरी और गुरु गणपति मंदिर को ‘ इश्किया गजानन ‘ के नाम से चर्चित कर दिया ।
मंदिर के संरक्षक व जीर्णोद्धारक ब्रह्मलीन वैद्य बद्रीप्रसाद सारस्वत ने दो दशक पहले माघ शुक्ल पंचमी को मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था ।