शपथ पत्र के साथ पेश करने के निर्देश दिए थे राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य में महिलाओं और बालिकाओं पर बढ़ते अत्याचार को लेकर 17 मई को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित टिप्पणी ‘निकम्मेपन की हद’ पर स्व प्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए राज्य के पुलिस महानिदेशक व गृह सचिव से जवाब मांगा था। वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढ़ा और न्यायाधीश विनित कुमार माथुर की खंडपीठ में अतिरिक्त महाधिवक्ता करणसिंह राजपुरोहित ने कहा कि पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने राज्य के सभी जिला न्यायाधीशों को चार सप्ताह में पिछले छह महीनों के दौरान उनके क्षेत्राधिकार में महिला अत्याचारों से जुड़ी एफआइआर अधीनस्थ अदालतों के आदेश के बाद दर्ज किए जाने तथा राज्य सरकार को इसी अवधि में पुलिस द्वारा बिना कोर्ट के दखल के दर्ज की गई एफआइआर का विवरण शपथ पत्र के साथ पेश करने के निर्देश दिए थे।
पुलिस को एफआइआर दर्ज करने के आदेश विवरण प्राप्त होने की जानकारी देते हुए राजपुुरोहित ने इसे शपथ पत्र के साथ पेश करने के लिए समय मांगा। खंडपीठ ने राज्य के सभी जिला न्यायाधीशों को यह बताने को कहा था कि 1 जनवरी, 2019 से छह महीने की अवधि तक उनके क्षेत्राधिकार की अदालतों में सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत पेश कितने प्रार्थना पत्रों पर पुलिस को एफआइआर दर्ज करने के आदेश दिए गए। कोर्ट ने केवल भारतीय दंड संहिता की धारा 376 ( बलात्कार ), 354 ( छेड़छाड़ या उत्पीडऩ ), 304 बी ( दहेज हत्या ), 306 ( आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण ) और पॉक्सो एक्ट के तहत एफआइआर दर्ज करने से संबंधित आदेश देने का ब्यौरा संकलित करते हुए तालिका के रूप में पेश करने के निर्देश दिए थे। न्याय मित्र विकास बालिया ने पुलिस, न्यायिक अधिकारियों, मेडिकल स्टाफ के लिए ट्रेनिंग मॉड्यूल और स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर ( एसओपी ) के संबंध में ब्यौरा दिया था।