मस्कुलर डिस्ट्रोफी पीडि़तों के लिए सरकार बताए कार्य योजना: कोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने मस्कुलर डिस्ट्रोफी जैसी दुर्लभ बीमारी से पीडि़त रोगियों को बुनियादी चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाएं दिए जाने की याचना को लेकर दायर जनहित याचिका पर केंद्र व राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
मस्कुलर डिस्ट्रोफी पीडि़तों के लिए सरकार बताए कार्य योजना: कोर्ट
जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने मस्कुलर डिस्ट्रोफी जैसी दुर्लभ बीमारी से पीडि़त रोगियों को बुनियादी चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाएं दिए जाने की याचना को लेकर दायर जनहित याचिका पर केंद्र व राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महांति तथा न्यायाधीश विनित कुमार माथुर की खंडपीठ में याचिकाकर्ता वैभव भंडारी की ओर से अधिवक्ता डा.सचिन आचार्य ने कहा कि मस्कुलर डिस्ट्रोफी यानी पेशीय दुर्विकास ऐसे आनुवांशिक रोगों का समूह है जिसमें क्रमिक अंदाज में कमजोरी आती जाती है और गति को नियंत्रित करने वाली कंकालीय पेशियां (स्केलेटल मसल्स) छीजती जाती हैं। उन्होंने कहा कि इस बीमारी में कई तरह के पेशीय दुर्विकास होते हैं। इस बीमारी के कुछ रूप नवजात शिशुओं और बच्चों में भी देखे गए हैं। आचार्य ने कहा कि इस दुर्लभ बीमारी के नियंत्रण के लिए उपचार की कीमत बहुत ज्यादा है। मस्कुलर डिस्ट्रोफी में यह करीब सोलह करोड़ रुपए तक है। सरकारी मदद के अभाव में इस बीमारी से पीडि़तों को शारीरिक और आर्थिक रूप से कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 और इसके नियम दिव्यांगों के अधिकारों के प्रवर्तन की व्यवस्था को नियंत्रित करते हैं, लेकिन मस्कुलर डिस्ट्रोफी से पीडि़त रोगियों के लिए केवल आरक्षण का प्रावधान है, उनके लिए भोजन, चिकित्सा देखभाल, पुनर्वास जैसी जरूरतों पर कोई व्यवस्था नहीं दी गई है। जनहित याचिका में जिला स्तर पर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीडि़त व्यक्तियों को बुनियादी चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने, पीडि़त रोगियों की चिंताओं को दूर करने के लिए वैधानिक ढांचे की रूपरेखा तैयार करते हुए पर्याप्त धन की उपलब्धता सुनिश्चित करने, राज्य के साथ-साथ जिला स्तर पर बीमारी से पीडि़त रोगियों के उपचार व पुनर्वास के लिए एक अलग नोडल निकाय के निर्माण,
रोगियों को पौष्टिक भोजन, फिजियोथेरेपी, स्वचालित व्हीलचेयर, देखभाल करने वाले पैरा चिकित्साकर्मी की सुविधा आदि जैसे जीवन के बुनियादी प्रावधान लागू करने सहित प्रसव पूर्व अवस्था में बीमारी का पता लगाने के लिए उचित परीक्षण और निदान तंत्र स्थापित किए जाने की याचना की गई है।
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