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जोधपुर

GST–जीएसटी : अभी ‘परीक्षण’ और ‘त्रुटि’ चरण में

जीएसटी डे स्पेशल

जोधपुरJul 01, 2020 / 10:31 pm

Amit Dave

GST--जीएसटी : अभी ‘परीक्षण’ और ‘त्रुटि’ चरण में

GST–जीएसटी : अभी ‘परीक्षण’ और ‘त्रुटि’ चरण में

जोधपुर।

देश में गुड्स एण्ड सर्विस टेक्स यानि जीएसटी को लागू हुए तीन वर्ष पूरे हो गए है। 1 जुलाई 2017 को एक आदर्श कर प्रणाली के रूप में जीएसटी को धूमधाम के साथ लांच किया गया था। अभी भी जीएसटी एक अधूरा प्रोजेक्ट है, जीएसटी प्रणाली ‘परीक्षण’ व ‘त्रुटि’ चरण में है। जीएसटी कराधान प्रणाली कई करों के प्रभाव को कम करने के लिए लाई गई। देश में आपूर्ति श्रृंखला में वस्तुओं और सेवाओं पर कई करों को जीएसटी नामक एक कर में मिला दिया गया। लेकिन तीन वर्ष बाद भी करदाता जीएसटी के कई नए प्रावधानों को समझ नहीं पा रहा है। ऐसे में वह लेट फीस के बोझ और रिटर्न के भार से परेशान है।

बिना रीढ़ वाला

विशेषज्ञों की माने तो भारत में जीएसटी को बिना रीढ़ यानि बिना जीएसटी सिस्टम को बिना विकसित किए लागू किया गया था। यह उम्मीद की जा रही थी कि यह निश्चित अवधि में विकसित हो जाएगा, लेकिन यह सिस्टम अभी भी पूर्ण रूप से क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। करदाताओं को इसके प्रावधानों की पालना में कई सरल त्रुटियां महंगी पड़ रही हैं।
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ये सुधार हुए

– रिफ ंड के जल्दी निपटान जैसे क्षेत्रों में कुछ सुधार हुए है।

– कई करों को एक में एकीकृत किया गया है।

– पूरे देश में एकीकृत ईवे बिल सिस्टम लागू किया।

यह भी होने चाहिए

– एनालिटिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर अभी भी विकसित नहीं हुआ। इससे विभागीय अधिकारी जीएसटी प्रावधानों के उल्लंघन करने वालों पर नकेल नहीं कस पा रहे हैं।

– कराधान न्यायाधिकरणों का गठन नहीं किया गया है।
– सरलीकृत रिटर्न फाइलिंग सिस्टम।

विशेषज्ञ बोले

सरल और सुलभ बने जीएसटी के सफल क्रियान्वयन के लिए इसके कानूनी और तकनीकी ढांचे पर नए सिरे से विचार कर एक योजना तैयार करने की जरुरत है, जो जीएसटी और इसके अनुपालन को सरल और सभी के लिए आसानी से सुलभ बना सके।
अर्पित हल्दिया, सीए व जीएसटी विशेषज्ञ

कारोबारी बोले

जीएसटी प्रणाली जटिल प्रक्रिया है। इसमें सरलीकरण होना चाहिए। कार्य त्वरित होने चाहिए। प्रोफेशनल्स की मदद के बिना कार्य नहीं हो पाता है।
अशोक चौहान, उद्यमी

जीएसटी के कई प्रावधान आम उद्यमी या छोटे-मझले उद्यमी की समझ में नहीं आ रहे है, इसलिए रिटर्न फाइल करने में देरी होती है। जिसका खमियाजा करदाता को भुगतना पड़ रहा है।
जीके गर्ग, उद्यमी

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