जानकारों की माने तो गोवंश पुष्प के पौधों व नीम की पत्तियों का आमतौर पर पेट भरने के लिए चारे के रूप में उपयोग नहीं करता है, लेकिन पेट की भूख मिटाने के लिए गोशालाओं में नीम की पत्तियां चारे के साथ दी जा रही है। इससे पशु भी भूख मिटाने के लिए नीम की पत्तियां बतौर चारे के रूप में चरने को मजबूर है।
दो माह में दो गुना बढे़ भाव जानकारों के अनुसार पशुपालक आमतौर पर पशुओं के लिए मूंगफली, हरी ज्वार की कड़प, चना, गेहूं का खाखला के चारे का उपयोग करते हैं, लेकिन इनकी अधिक कीमतों की सूरत में मेथी, बाजरा, कुतर का उपयोग करते हैं।लेकिन इस बार इन चारों की कीमतें भी अधिक हो गई है, जिससे व्यथित होकर गोशाला संचालकों ने नीम की पत्तियों को गेहूं के खाखले के साथ देना शुरू किया है। भीषण गर्मी के दौर में पेट भरने की मजबूरी में गौवंश नीम की पत्तियां भी चारे के साथ चरकर अपने पेट की भूख को शांत कर रहे हैं।
यह है पशुचारा की थोक कीमत चाराे की किस्म प्रतिक्विंटल भाव मूंगफली 1,150 चना 700 मैथी 500 गेहूं खाखला 1,000 बाजरी चारा 1,250 हरी ज्वार कड़प 400
पशुओं का पेट पालना हो रहा मुश्किल जिस तरह से पशु चारा की कीमतों को बढ़ाया गया है, ऐसे में पशुपालकों के लिए पशु का पेट भरना मुश्किल हो गया है। सरकार को इस ओर कदम उठाने चाहिए।
– रविन्द्र जैन, अध्यक्ष पिंजरापोल गोशाला सेवा समिति बढ़ रही निराश्रित गोवंश की संख्या पशुचारा की कीमतों में हुई दो गुना तक की बढोतरी से फलोदी सहित आस-पास के क्षेत्रों में पशुओं का पालन करना मुश्किल हो गया है। जिससे शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में निराश्रित गोवंश की संख्यां में बढोतरी हो रही है। पशुचारा की कीमतों को नियंत्रित करने के प्रयास नहीं होने से हालात बिगड़ रहे हैं।
– जयराम गज्जा, गोसेवक फलोदी
स्टॉक पर कसे लगाम तो सस्ता हो चारा कुछ धनाढ्य लोगों ने मूंगफली, गेहूं का खाखला व अन्य पशु चारा का स्टॉक कर रखा है और वे अपने भाव से माल बेच रहे है। जिससे चारे की कीमतों में बहुत अधिक बढोतरी हुई है। स्टॉकिस्टों के विरूद्ध कार्यवाही हो तो कीमतों में कमी लाई जा सकती है।
– प्रफुल जैन, गोशाला संचालक पशुओं का पालन करना हो रहा मुश्किल फलोदी कृषि प्रधान क्षेत्र है, यहां नलकूपों से सिंचित बुवाई होती है। ऐसे में चारे की कमी नहीं रहती है। आस-पास के क्षेत्रों में भी बहुत से नलकूप व नहरी बेल्ट है। ऐसे में यहां चारे को सस्ती कीमत पर खरीद कर रसूखदारों ने स्टॉक कर लिया है। जिसे वे अब ऊंची कीमत पर बेच रहे है। पशुपालकों के लिए पशुओं का पालन करना मुश्किल हो गया है।
– आशुलाल शर्मा, पशुपालक फलोदी