उन्होंने कहा कि युवाओं की यह सोच गलत है कि विदेश में जा कर ही तरक्की की जा सकती है। मैंने भारत में ही रह कर बड़ा काम किया है। इसलिए युवा विदेश का मोह छोड़ दें। भारतीय शोधकर्ता अक्सर उन्नत तकनीकों का लाभ लेने व भविष्य में उस शोध के नतीजों के विशाल बाजार के बारे में सोच कर विदेश जाते हैं। जबकि भारत में ही सुविधाएं और बाजार दोनों हैं। हां, भारत की एक तात्कालिक समस्या पीने योग्य साफ़ पानी उपलब्ध कराने की है, मेरा यह अविष्कार उसी से सम्बंध रखता है।
प्रो. पीयूष शर्मा ने कहा कि मारवाड़ में पीने के पानी के सीमित साधन हैं और अक्सर पानी के स्रोत कारख़ानों व वाहनों से निकलने वाले तैलीय, हाइड्रोकार्बन युक्त अपशिष्टों से प्रदूषित हो जाते हैं। ऐसे में इन्हें प्रदूषण मुक्त करने में ये उपकरण बहुत कारगर है। जोधपुर और पाली में बहुत से रंगाई छपाई उद्योग हैं, जिनसे हाइड्रोकार्बन डाईयुक्त गंदा पानी निकल कर तालाबों व नदियों आदि में मिलता है। ऐसे उद्योगों में इस अविष्कार को काम में ले सकते हैं।
हमारे लिए यह बहुत उपयोगी है। क्योंकि इसे प्रदूषित पानी साफ करने वाली इकाइयों से जोड़ा जा सकता है। इस शोध और इससे पहले के एक शोध और पेटेंट में गाइड डॉ. अनिल भंडारी ने बहुत मदद की। उनके निर्देशन में यह अविष्कार हो सका।
उन्होंने कहा कि मेरे विचार में देश में रहकर यहाँ के लिए कुछ करने से जो संतुष्टि मिलेगी, वह विदेश जा कर नहीं मिल सकती। इसीलिए अपनी पीएचडी करने के साथ ही मैंने यह यंत्र बनाया, जिसमें एक्रोमोबेक्टर नामक जीवाणु पानी में उपस्थित हाइड्रो कार्बन अशुद्धियों का भक्षण करके पानी साफ करता है. यंत्र में फिक्स होने के कारण यह स्वयं पानी में नहीं जाता। इस अविष्कार में प्रयुक्त सामग्री साधारण चीज़ों जैसे प्लास्टिक के डिब्बे व नलियों से बनाई गईं, जो महंगे नहीं पड़ते। भारत में ही इसका प्रयोग पानी शुद्धीकरण इकाइयों में और पेट्रो कैमिकल उद्योग में किया जा सकता है। इसलिए ऐसे बहुत से वैज्ञानिक कार्य हैं, जिनके लिए विदेश जाने की जरूरत नहीं है।