जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी के रसायन विज्ञान विभाग ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से एक अध्ययन में यह पाया है कि जोजरी नदी के आस-पास सीवरेज और उद्योगों से निकले प्रदूषित पानी से सिंचित गेहूं, बाजारा, ज्वार, जौ, मक्का, मूंग, मोंठ, अरहर, चना और मसूर की दालों में हैवी मेटल्स की मौजूदगी हैं। इस इलाके में ज्यादातर किसान आसानी से उपलब्ध होने की दशा में प्रदूषित पानी को सिंचाई के उपयोग में ले रहे हैं।
रसायन विभाग की प्रो. पल्लवी मिश्रा ने बताया कि जोजरी नदी के आस-पास उगे खाद्यान्न के नमूने संकलित करके इनकी जांच की गई। नमूनों की जांच में सामने आया कि कृषि उत्पादों में सीसा और कैडमियम की सांद्रता विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की स्वीकार्य सीमाओं से अधिक थी। कृषि भूमि पर लगातार प्रदूषित पानी की सिंचाई से खाद्यान्न और यहां उगाई जाने वाली सब्जियों में हानिकारक हैवी मेटल्स की मात्रा बढ़ी है।
विभिन्न अनाजों के परीक्षण में कैडमियम, सीसा, जस्ता, निकल, तांबा और क्रोमियम की खतरनाक सांद्रता पाई गई, जो कि डब्ल्यूएचओ और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा निर्धारित मानकों से ज्यादा है। उन्होंने बताया कि हैवी मेटल्स की अधिकता मानवीय सेहत के अलावा पशुधन के लिए भी खतरनाक है। इससे कैंसर, गैस, त्वचा की एलर्जी सहित कई बीमारियां होने का अंदेशा रहता है।