पत्रिका एक्सक्लूसिवबासनी (जोधपुर). मोटे और ज्यादा उम्र में होने वाली बीमारी मधुमेह बड़ों से ज्यादा उन बच्चों के लिए ज्यादा चैलेंजेबल है जो जन्म के कुछ साल बाद ही इसके शिकार हो जाते हैं।
भारत में इस बीमारी को लेकर वर्ष 2010-12 तक पीजीआई चंडीगढ में दो साल तक हुए शोध में भी सफलता नहीं मिली। जिससे ये चुनौती और बढ़ गई है। यही कारण है कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में पिछले डेढ़ साल में एंडोक्रोनोलॉजी विभाग में अब तक कुल अलग अलग उम्र के 11 हजार मरीजों ने इलाज कराया है। इसमें से अधिकतर मरीज यहां के चिकित्सकों के संपर्क में है। इसमें से 100 ऐसे मरीजों का इलाज चल रहा है जो 10 से 18 साल की उम्र में इस लाइलाज बीमारी से जूझते हुए सरवाइव कर रहे हैं।
एम्स में इस बीमारी को टाइप-1 के रूप में चिन्हित किया गया है।
क्या है टाइप-1 मधुमेह8-9 साल की उम्र के बाद इसका पता चलता है तब इनमें इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। उसके बाद चाहे ये कैसा भी खाना खाऐ लेकिन दिन में 4 बार इंसुलिन देना पड़ता है। शरीर में एंटीबॉडीज कमी के कारण यह बीमारी होती है। जो एक तरह से अपने आप को नष्ट करती है। पाकिस्तान के मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी वसीम अकरम इसी बीमारी से पीडि़त थे, जो खेल के मैदान में बीच में ही इंसुलिन का इंजेक्शन लेने के लिए बाहर जाते थे।
फैक्ट फाइल (आंकड़ों पर नजर)टाइप 1- मई 2016 से अब तक एम्स में 100 बच्चों में पंजीयन कर यहां इलाज शुरू किया गया। इसमें अधिकतर बच्चे 9-10 साल की उम्र के थे।
टाइप 2- डेढ साल में अब तक हर माह 2 हजार मरीज आए। इसमें मोटापे से और ज्यादा उम्र में मधुमेह पाया गया। मधुमेह के सबसे ज्यादा मरीज इसी श्रेणी के होते हैं।
डायबिटीज इन यंग- एम्स में हर माह 1000 मरीज आए, जिनको 40 या उससे कम उम्र में मधुमेह हो गया। ये बीमारी आनुवांशिक कारणों से होती है जिससे
अनिल कपूर और
सोनम कपूर पीडि़त हुए हैं।
एक्सपर्ट व्यूटाइप-1 को लेकर विश्व में सिर्फ कनाडा के एडमंटन शहर में इस पर शोध सही दिशा में चल रहा है। जिसमें स्टेम सेल से इंसुलिन बनाने वाले सेल (बीटा सेल) बनाए गए हैं जिन्हें संभवत: मधुमेह के मरीज में ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। देश में मुर्दों के शरीर में किडनी में पेंक्रियाज में पाए जाने वाले बीटा सेल को मधुमेह के मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट कर लगा देते हैं, फिलहाल देश में चैन्नई, दिल्ली और
जयपुर में पैंक्रियाज ट्रांसप्लांट हुए हैं। हालांकि इसमें पूरी तरह सफलता नहीं मिली है।
-डॉ. रविन्द्र कुमार शुक्ला, डीएम, एंडोक्रोनोलॉजी विभाग, एम्स Home / Jodhpur / जोधपुर : बड़ों के मुकाबले बच्चों के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती