ग्रामीण इलाकों में खेतों में जब फसलें पक जाती थी और अकेला परिवार उसे समेटने की स्थिति में नहीं रहता था, तो किसान ‘लाह’ आयोजन करता था। जिसके तहत वह किसान पूरे गांव में दूसरे किसानों के घर-घर जाकर उनको अपने खेत में फसल कटाई के लिए न्यौता देता और गांव के लोग सामूहिक रूप से न्यौता स्वीकार कर किसान के खेत में फसल कटाई के लिए जुट जाते थे। किसानों के सामूहिक सहयोग से होने वाली इस ‘लाह’ में १00 से 500 तक किसान एक साथ काम करते थे और इन्हें लाहिया अथवा लासिया कहा जाता है। लेकिन फसल कटाई का कार्य करने के लिए आने वाले इन साथी किसानों को काम के बदले मजदूरी नहीं दी जाती थी और उन्हें सिर्फ सामूहिक रुप से भोजन ही परोसा जाता था। जिसके तहत किसानों के लिए अधिकांशतया लापसी, हलवा, खीच व बिणज आदि देशी पकवान बनाए जाते थे। इसमें भी खास बात यह रहती कि भोजन के दौरान उन्हें थाली में कटोरी से भरपूर घी भी परोसा जाता था। इसके लिए ‘लाह’ के दौरान काम करने वाले लाहियों के लिए भोजन आदि खेत में ही बनते थे और बड़ी सी कड़ाही में भोजन तैयार होता था।
‘लाह’ के दौरान पहले कुछ लोग ढोलक-मजीरे बजाते थे और अब इसकी जगह डीजे ने ले ली है। जहां खेत में सामूहिक रुप से काम करते समय डीजे पर गूंजते लोकगीतों पर नाचते-गाते हुए किसान अपना काम करते थे। यही नहीं, ‘लाह’ में भाग लेने वाली महिलाएं पैरों में घुंघरु आदि बांधकर आती थीं और तेजागायन करते हुए फसल समेटने का काम करते थे। दूर-दूर तक गीतों की गूंज सुनकर दूसरे लोगों को भी पता चल जाता था, कि आसपास में कहीं ‘लाह’ का आयोजन हो रहा है। इस क्रम में सोमवार को आसोप कस्बे के पास प्रगतिशील किसान सोहनलाल बांता व नंदराम भाकल के खेत में ‘लाह’ का आयोजन किया गया, जिसमें करीब सवा सौ किसानों ने भाग लेकर उनके खेत में खड़ी मूंग की फसल की एकसाथ कटाई कर समेटने का काम किया। इस दौरान खेत में डीजे की भी व्यवस्था की गई और लाहियों ने लोकदेवता तेजाजी के तेजागायन एवं भगड़ावत के गीतों पर नाचते-गाते हुए खेती का काम किया। ‘लाह’ में सहयोग करने आए किसानों के लिए खेत में ही सामूहिक भोज की भी व्यवस्था की गई।(निसं)