आज उनके विचारों के कारण ही राजस्थान ही नहीं समूचा विश्व उन्हें याद कर रहा हैं। गांधी स्वयं ‘वन मैन आर्मी’ थे। वे अपने जीवन काल में तीन बार राजस्थान आए एवं स्वतंत्रता आंदोलन के लिए गांधीवादियों को मार्गदर्शन व आशीर्वाद दिया। गांधी और राजस्थान की ऐतिहासिक पूष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अजमेर, मारवाड़, मेवाड़ व जयपुर उनके केंद्र बिन्दु रहे।
इन केन्द्रों के माध्यम से उन्होंने जयनारायण व्यास, हीरालाल शास्त्री, माणिक्यलाल वर्मा, भौगीलाल पाण्ड्या, गोकुलभाई भट्ट, हरिभाउ उपाध्याय, किशनगोपाल गर्ग, रामकरण चौधरी जैसे कई गांधीजनों एवं स्त्रियों को जोड़ा। इन सभी ने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्ती भूमिका निभाई।
भटनागर ने कहा कि गांधी कौमी एकता के समर्थक थे, आज इस बात की आवश्यकता हैं कि नई पीढ़ी को गांधी के कार्यों से परिचित करवाएं यही बापू के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। गांधी अजातशत्रु एवं ज्योतिपूंज थे। युवाओं को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
कार्यक्रम अध्यक्ष आशा बोथरा ने कहा कि युवा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों से जुड़ें। संगोष्ठी में देवेन्द्रनाथ मोदी, शहर काजी मोहम्मद तैय्यब अंसारी, डॉ. पद्मजा शर्मा, डॉ. संध्या शुक्ला, बादलराज सिंघवी, अशोक चोधरी, महेन्द्र सिंह पुनिया, जयपाल सिंह चांपावत, गौतम के. गट्स, प्रविन्द्र यादव, नवीन चितारा, सुनील चारण, अम्बालाल जेदिया, हरचंद विश्नोई व अन्य मौजूद रहे।
इससे पूर्व सचिव भावेंद्र शरद जैन ने डॉ. भटनागर लिखी पुस्तक पर की जानकारी दी और गांधी शांति प्रतिष्ठान केंद्र की गतिविधियों का परिचय दिया। धर्मेश रूटिया ने सभी का आभार ज्ञापित किया।