मेजर शैतानसिंह : एक नजर
कर्नल हेमसिंह भाटी विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में जख्मी हुए थे। तब उन्हें ब्रिटिश सरकार की ओर से ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश अम्पायर व तत्कालीन राजघराने की ओर से हाथी सिरोपाव से नवाजा गया था। उन्हीं के पुत्र शैतानसिंह का एक दिसंबर १९२४ को फलोदी के बानासर गांव में जन्म हुआ। वे जब मात्र डेढ़ साल के थे, तब उनकी मां जवाहर कंवर का निधन हो गया। बालक शैतानसिंह की चौपासनी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हुई। उसके बाद उन्होंने जसवंत कॉलेज से बीए किया। वे कोटा की उम्मेद इन्फेन्ट्री में द्वितीय लेफ्टिनेंट के रूप में भर्ती हुए और सन 1947 के बाद भारतीय सेना में आ गए। भारतीय थल सेना की 13 कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात मेजर भारत-चीन युद्ध के दौरान 18 नवंबर 1962 को लेह- लद्दाख में में शहीद हो गए थे।
मेजर शैतानसिंह के पुत्र नरपतसिंह भाटी के मुताबिक जब उनके पिता शहीद हुए उस समय वे सतरह बरस के थे और अजमेर में पढ़ाई कर रहे थे। उनके १शहीद होने के समय बर्फ जमी होने के कारण उनकी पार्थिव तीन महीने बाद भारतीय वायुसेना के विशेष विमान से लद्दाख से जोधपुर लाई गई थी। उनकी पार्थिव देह पहले एयरपोर्ट से महाराजा उम्मेदसिंह के साले जी कर्नल मोहनसिंह के घर लाई गई थी। उसके बाद अंतिम दर्शन के लिए जोधपुर के सर्किट हाउस में रखा गया था। उनका 19 फरवरी 1963 को कागा श्मशान घाट में पूरे राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार किया गया था। बाद में श्मशान घाट के बाहर उनके नाम का पट्ट अंकित किया गया था।
परमवीर मैजर शेतानसिंह भाटी की प्रतिमा का पावटा चौराहे पर 18 नवम्बर 1986 को अनावरण हुआ। कार्यक्रम में 12 इन्फेन्ट्री डिविजन के जीओसी मेजर जनरल जी.सी. भण्डारी मुख्य अतिथि व वीरांगना सुगन कंवर, अधिशासी अभियंता हजारीलाल जांगिड़ व सचिव जीवाराम चौहान विशिष्ट अतिथि थें। तत्कालीन विधायक मानसिंह देवड़ा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की थी। इसी चौराहे पर 12 पैदल सैना खण्ड के जीओसी मेजर जनरल आर. कार्तिकेयन ने 18 नवम्बर 1994 को नवीनीकरण प्रतिमा लोकार्पित की थी।