scriptमेजर शैतानसिंह ने चीन के छक्के छुड़ा कर चुशुल को बचाया था | Major Shaitansingh rescued Chushul from China | Patrika News
जोधपुर

मेजर शैतानसिंह ने चीन के छक्के छुड़ा कर चुशुल को बचाया था

जोधपुर ( jodhpur news. current news ).भारत के जांबाज सपूत मेजर शैतानसिंह ( Major Shaitan Singh ) ने शहीद ( martyr ) हो कर देश की रक्षा की और सैन्य इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। वे चुशुल पर गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी दुश्मन को ललकारते रहे थे । मेजर शैतानसिंह शहीद दिवस पर पेश है उनकी शहादत की दास्तान ( Story Of Major Shaitan Singh Param Vir Chakra ) :
 
 
 

जोधपुरNov 18, 2019 / 03:21 am

M I Zahir

Major Shaitansingh rescued Chushul from China

Major Shaitansingh rescued Chushul from China

एम आई जाहिर ( m i zahir )/ जोधपुर. ( jodhpur news. current news ). आज चीन बार-बार हमारी सीमा में घुस कर भारत को ललकारने का दु़स्साहस करता है, लेकिन राजस्थान के जांबाज मेजर शैतानसिंह ( Major Shaitan Singh ) और उनके साथियों ने अपने अदम्य साहस से बहादुरी का इतिहास रचा था। मेजर ( Story Of Major Shaitan Singh Param Vir Chakra ) ने केवल चुशुल एयरपोर्ट को बचाया, बल्कि चीनी सेना के छक्के छुड़ाए दिए थे। वे सन १९६२ में कड़ाके की ठंड में लद्दाख में दुर्गम पर्वतीय इलाके में चीनी सेना के हाथों बुरी तरह जख्मी होने के बावजूद अपनी रेजीमेंट के जवानों को दुश्मनों से मुकाबले के लिए ललकारते जा रहे थे। इस दौरान उन्होंने चुशुल एयरपोर्ट की भी सुरक्षा की थी। वे भारतीय थल सेना की 13 कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात मेजर भारत-चीन युद्ध के दौरान 18 नवंबर 1962 को लेह-लद्दाख में चुशुल एयरपोर्ट को बचाते हुए रजांगला पोस्ट की लड़ाई में शहीद हो गए थे। हालात कुछ एेसे थे कि चीनियों ने सडक़ तक पहुंचने के लिए चुशुल के लवारणी इलाके पर कब्जा कर लिया था। चीन के खिलाफ उस ऑपरेशन के लिए कंपनी प्लाटून ने दस-दस जवानांें की सात मोर्चों पर चौकियां बनाई थीं। तभी 18 नवंबर 1962 की सुबह 4 बजे चीनी सेना ने दो प्लाटून पर हमला किया, तब मेजर शैतानसिंह और साथी जवानों ने चीनियों को को दोनों जगह से पीछे धकेल दिया था। एेसे में मेजर ने चीनी सेनिकों को मशीनगनों से भून दिया था। इस युद्ध में बांयी प्लाटून की ओर से आधे घंटे की जंग में इन भारतीय जवानों की जीत हुई,लेकिन शत्रुओं का दबाव जारी रहा और वे वार पर हमला करते रहे। सूबेदार सुरजाराम (वीर चक्र) ने मोर्टार तोपों की गोलाबारी कर दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया था। तब चीनी सेना ने मेजर शैतानसिंह की बांयी कंपनी के हैड क्वार्टर पर हमला किया, लड़ाई में कई चीनी मारे गए थे, लेकिन उन्होंने चौकी पर कब्जा कर लिया। हमले में मेजर शैतानसिंह गंभीर रूप से घायल हो गए। उनके बाजू और पेट पर गोली लगी थी। इस बीच उनकी रेजीमेंट का नीेचे सेना से संपर्क कट गया था। जब जवान उन्हंे उठा कर नाले की ले जाने लगे तो उन्होंने उन्हंे मना किया था। मेजर ने कहा था, आदमी कम हैं, इसलिए नीचे जा कर रिपोर्ट करो। गंभीर रूप से घायल होने की वजह से मेजर शैतानसिंह भारतीय थल सेना की 13 कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात मेजर भारत- चीन युद्ध के दौरान 18 नवंबर 1962 को लेह-लद्दाख में चुशुल एयरपोर्ट को बचाते हुए रिजांगला की लड़ाई में शहीद हो गए। शहीद होने के समय वे 37 वर्ष के थे। रिजांगला पहाड़ी पर लड़ाई में 120 में से 114 जवान शहीद हो गए थे। इनमें से एक को परमवीर चक्र, 8 को वीर चक्र और बाकी को सेना पदक से सम्मानित किया गया। उन्हें अदम्य साहस व बलिदान के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया। शहीद होने के बाद उनके गांव का नाम मेजर शैतानसिंह नगर व फलोदी से दस बारह किमी दूर स्थित बानासर स्टेशन का नाम मेजर शैतानसिंह स्टेशन रखा गया। आज यह स्टेशन छीला गांव में है।

मेजर शैतानसिंह : एक नजर
कर्नल हेमसिंह भाटी विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में जख्मी हुए थे। तब उन्हें ब्रिटिश सरकार की ओर से ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश अम्पायर व तत्कालीन राजघराने की ओर से हाथी सिरोपाव से नवाजा गया था। उन्हीं के पुत्र शैतानसिंह का एक दिसंबर १९२४ को फलोदी के बानासर गांव में जन्म हुआ। वे जब मात्र डेढ़ साल के थे, तब उनकी मां जवाहर कंवर का निधन हो गया। बालक शैतानसिंह की चौपासनी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हुई। उसके बाद उन्होंने जसवंत कॉलेज से बीए किया। वे कोटा की उम्मेद इन्फेन्ट्री में द्वितीय लेफ्टिनेंट के रूप में भर्ती हुए और सन 1947 के बाद भारतीय सेना में आ गए। भारतीय थल सेना की 13 कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात मेजर भारत-चीन युद्ध के दौरान 18 नवंबर 1962 को लेह- लद्दाख में में शहीद हो गए थे।
तीन महीने बाद जोधपुर पहुंची थी पार्थिव देह
मेजर शैतानसिंह के पुत्र नरपतसिंह भाटी के मुताबिक जब उनके पिता शहीद हुए उस समय वे सतरह बरस के थे और अजमेर में पढ़ाई कर रहे थे। उनके १शहीद होने के समय बर्फ जमी होने के कारण उनकी पार्थिव तीन महीने बाद भारतीय वायुसेना के विशेष विमान से लद्दाख से जोधपुर लाई गई थी। उनकी पार्थिव देह पहले एयरपोर्ट से महाराजा उम्मेदसिंह के साले जी कर्नल मोहनसिंह के घर लाई गई थी। उसके बाद अंतिम दर्शन के लिए जोधपुर के सर्किट हाउस में रखा गया था। उनका 19 फरवरी 1963 को कागा श्मशान घाट में पूरे राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार किया गया था। बाद में श्मशान घाट के बाहर उनके नाम का पट्ट अंकित किया गया था।
यादगार पावटा चौराहा
परमवीर मैजर शेतानसिंह भाटी की प्रतिमा का पावटा चौराहे पर 18 नवम्बर 1986 को अनावरण हुआ। कार्यक्रम में 12 इन्फेन्ट्री डिविजन के जीओसी मेजर जनरल जी.सी. भण्डारी मुख्य अतिथि व वीरांगना सुगन कंवर, अधिशासी अभियंता हजारीलाल जांगिड़ व सचिव जीवाराम चौहान विशिष्ट अतिथि थें। तत्कालीन विधायक मानसिंह देवड़ा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की थी। इसी चौराहे पर 12 पैदल सैना खण्ड के जीओसी मेजर जनरल आर. कार्तिकेयन ने 18 नवम्बर 1994 को नवीनीकरण प्रतिमा लोकार्पित की थी।

Home / Jodhpur / मेजर शैतानसिंह ने चीन के छक्के छुड़ा कर चुशुल को बचाया था

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो