उन्होंने कहा कि अहंकार भगाइए, विनम्रता लाइए। अहंकार हथोड़ा है तो विनम्रता चाबी। याद रखिए हथोड़े से ताला टूटता है और चाबी से खुलता है। अपनी प्रतिष्ठा लम्बे अरसे तक बनाए रखने के लिए हाथ की सच्चाई और बात की सच्चाई सदा बनाए रखिए। दिए हुए वचन और लिए हुए संकल्प हर हाल में निभाने का प्रयास कीजिए। प्रेम सबसे कीजिए, पर गुस्सा किसी पर मत कीजिए। क्रोध आपके व्यक्तित्व को धूमिल करता है, वहीं प्रेम उसे और अधिक निखारता है। क्रोध के बजाय शांति को तवज्जो दीजिए। ईष्र्या के बजाय सम्मान की भावना पैदा कीजिए और चिंता के बजाय खुशमिजाज रहने की कोशिश कीजिए। सहनशीलता बढ़ाइए। छोटी-छोटी बातों पर हताश मत होइये। चिड़चिड़ापन आपके रिश्तों में खटास घोलेगा। मुस्कुराइए और सबसे प्रेमचारा बढ़ाइए।
उन्होंने कहा कि जो चंदन घिसता है वह भगवान के चरणों में चढ़ता है, जो लकड़ी अकड़ी हुई रहती है वह केवल जलाने के काम आती है। छोटी-मोटी बातों को लेकर तकरार मत कीजिए। आप सही हैं तब भी बहस मत कीजिए। राई का पहाड़ बनाने से केवल रंजिश ही बढ़ती है।
संत प्रवर ने कहा कि चेहरे के सौंदर्य पर ज्यादा ध्यान देने के बजाय अपने जीवन को सुन्दर बनाने का प्रयास कीजिए। जीवन की सुन्दरता कुरूप चेहरे को भी ढक देती है। जीवन में दूसरों को झुकाने की नहींए स्वयं झुकने की भावना रखिए। आम ज्यों-ज्यों पकता है, त्यों-त्यों डाली झुकती है। अकड़ी डालियों पर तो खट्टी कैरी ही लगा करती है।
उनके प्रति सदा धन्यवाद भाव रखिए जिन माता-पिता से आप पैदा हुए हैं। अपने उन बड़े भाई.बहनों के प्रति नरम रहिए, जिन्होंने आपको पाला है, उस धर्मपत्नी के प्रति सकारात्मक रहिए, जिससे आपको जीवन का सुकून मिला है और उन कर्मचारियों के प्रति भी सही रहिए, जिनकी बदौलत आपके पास दौलत है।
उन्होंने कहा कि अपनी प्रशंसा और औरों की निंदा की आदत से बचिए। आत्म प्रशंसा आपको अहंकारी का खिताब दे सकती है और निंदा आलोचक का खिताब। सदा मधुर वचनों का उपयोग कीजिए। कड़वी बात का भी मधुर जवाब दीजिए। जैसे पिस्तौल से छूटी गोली और मां के पेट से निकला बच्चा वापस भीतर नहीं जा सकता, वैसे ही बोला हुआ वचन वापस लौटाया नहीं जा सकता। याद रखिए हर बात सोचने की तो होती है, पर बोलने की नहीं होती। जो सोचा है वह मत बोलिए अपितु बोलने से पहले यह भी सोच लीजिए कि क्या बोला जाए और कितना बोला जाए।
उन्होंने कहा कि हर जगह सम्मान पाने की कोशिश मत कीजिए। औरों को सम्मानित होते देख कर खुशी का अनुभव कीजिए। इससे बढ़ कर आपका सम्मान क्या हो सकता है कि आप अपने हाथों औरों को सम्मान दे रहे हैं। जीवन में विनम्रता की आदत डालिए। कुएं में उतरने वाली बाल्टी यदि झुकेगी तो ही पानी भर कर ला पाएगी। जीवन का भी यही गणित है जो नमेगा वह सबको गमेगा। दादागीरी तो हम मरने के बाद भी कर सकते हैं। लोग पैदल चलेंगे और हम उनके कंधों पर। अपने हाथों से औरों का सदा भला करने की कोशिश कीजिए। सदा याद रखिए कि औरों का हित करने वाला दैवीय मार्ग का अनुयायी होता है जबकि स्वार्थ से घिरा हुआ इंसान भगवद् कृपा से वंचित होता है। विपत्ति आए तो कोई आपत्ति मत कीजिए। उसका धैर्य पूर्वक सामना कीजिए। अग्नि से गुजर कर सोना और अधिक निखरता ही है।
इससे पूर्व संत प्रवर ने सभी को सांसों पर आधारित शांत और आनंद चित्त ध्यान का अभ्यास करवाया। डॉ मुनि शांतिप्रिय सागर ने सभी भाई बहनों को योग और थैरेपी का प्रशिक्षण दिया। अंत में प्रकाश दफ्तरी जयपुर ने आभार प्रकट किया। कार्यक्रम में मंच संचालन देवेंद्र गैलड़ा ने किया। प्रोग्राम में बड़ी संख्या में युवा पीढ़ी ने भाग लिया।