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जोधपुर

पाकिस्तान के सिंध तक फैला था मारवाड़ समुद्र

-स्टारफिश जैसे जीव आए सबसे पहले – समुद्र के कारण मिलता है छीतर का पत्थर
जोधपुर स्थापना दिवस विशेष

जोधपुरMay 12, 2021 / 09:53 pm

Gajendrasingh Dahiya

पाकिस्तान के सिंध तक फैला था मारवाड़ समुद्र

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जोधपुर. कैंब्रियन काल यानी 680 से 542 करोड़ वर्ष पहले जोधपुर समुद्र का किनारा हुआ करता था। इसका विस्तार सूरसागर, देचू, आगोलाई, बालेसर तक था। भूगर्भवेताओं ने इसे मारवाड़ समुद्र कहा है, जिसका विस्तार पाकिस्तान के सिंध प्रांत तक था। उस समय यहां स्टारफिश जैसे प्रारंभिक अकेशरुकी जीव थे। कालांतर में समुद्र की उथल-पुथल से बड़े जीव भी आए। समुद्री के नजदीक होने के कारण ही जोधपुर में छीतर का पत्थर बहुतायात में मिलता है।
समुद्र के साथ शहर के नीचे एक विशाल ज्वालामुखी भी था जिसका मुहाना मेहरानगढ़ के पास था। जोधपुर में ज्वालामुखी के पास मिलने वाली आग्नेय चट्टान और समुद्र के पास मिलने वाली अवसादी चट्टान दोनों ही मिली है। दोनों ही चट्टानों के प्रमाण मेहरानगढ़ में स्थित है। मेहरानगढ़ में लिफ्ट के पास दोनों चट्टानें एक दूसरे के साथ सम्पर्क में मिली है। इसे विषम विन्यास यानी अनकंफॉरमेटी कहते हैं। इस तरह की चट्टानें राव जोधा पार्क, बिलाड़ा और बालेसर के पास कुई जोधा गांव में मिली है। पूरे विश्व में इस तरह के विन्यास आधा दर्जन के करीब ही है। भारत में जोधपुर के अलावा विंध्याचल पर्वत और हिमालय में देहरादून के पास क्रोल समूह में मिलते हैं।
100 मीटर गहरा था समुद्र
जोधपुर में प्री कैंब्रियन पीरियड में समुद्र होने के कारण यहां छीतर का पत्थर मिलता है जो बूंदी कोटा से विंध्य पर्वतमाला तक जुड़ा हुआ है। इससे वैज्ञानिकों को भारत का भू विज्ञान समझने में मदद मिलती है। समुद्र की गहराई करीब 100 मीटर थी, जिसमें धीरे-धीरे अवसादी करण के साथ ही कशेरुकी जीव का प्रवेश हुआ।
जोधपुर से जैसलमेर शिफ्ट हो गया समुद्र
केम्ब्रियन काल के बाद जोधपुर से समुद्र हट गया। परमो कार्बोनिफेरस काल (300 करोड़ वर्ष पहले) में जोधपुर में जमीन हो गई और समुद्र जैसलमेर की तरफ शिफ्ट होता गया। बाप व भदूरा में इसके प्रमाण मिले हैं। 300 से 145 करोड़ वर्ष पहले पूरा मारवाड़ जमीन हो गया। इसमें खूब सारी नदियां थी और बड़े जंगल बन गए। ट्रॉपिकल इनवायरमेंट हो गया। उसके बाद से लेकर 30 करोड़ वर्ष पहले तक जैसलमेर-बाड़मेर की तरफ फिर समुद्र का वातावरण आ गया। फिर पर्यावरण बदला और मरुस्थलीकरण शुरू हो गया जो आज तक कायम है।
– प्रो सुरेश माथुर, पूर्व भूगर्भ विज्ञानी, जेएनवीयू जोधपुर

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