न्यायाधीश अरुण भंसाली ने मंगलवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि तथ्यों के आलोक में यह नहीं कहा जा सकता कि रिटर्निंग अधिकारी ने याचिकाकर्ता का नामांकन पत्र गलत खारिज किया था। बाड़मेर संसदीय क्षेत्र के रिटर्निंग अधिकारी ने 10 अप्रैल, 2019 को पंकज चौधरी का नामांकन इस आधार पर खारिज कर दिया था कि उन्होंने नामांकन के साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 9 व 33 (3) के तहत अपेक्षित प्रमाण पत्र जमा नहीं करवाया था। अधिनियम की धारा 9 के अनुसार, केंद्र या राज्य के अधीन सेवारत किसी व्यक्ति को यदि भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति वफादारी खोने के आरोप में बर्खास्त किया जाता है, तो ऐसा व्यक्ति पांच साल के लिए अयोग्य घोषित किया जाएगा। इसके लिए निर्वाचन आयोग का एक प्रमाण पत्र निर्णायक होगा, जिसमें यह स्पष्ट होगा कि बर्खास्तगी का आधार भ्रष्टाचार और राज्य के प्रति वफादारी खोना था या नहीं। अधिनियम की धारा 33 (3) के अनुसार, जहां उम्मीदवार एक ऐसा व्यक्ति है, जिसकी बर्खास्तगी को पांच साल नहीं हुए हैं, लेकिन यदि उसके पास निर्वाचन आयोग का यह प्रमाण पत्र है कि उसे भ्रष्टाचार और राज्य के प्रति वफादारी खोने के कारण बर्खास्त नहीं किया गया, नामांकन दाखिल कर सकता है। चौधरी की ओर से अधिवक्ता मोहम्मद परचा और रजाक के हैदर ने कोर्ट को बताया कि याची को पारिवारिक मामले के आधार बर्खास्त किया गया था, उसके खिलाफ दोनों तरह के आरोप नहीं है, लेकिन इसके बावजूद निर्वाचन आयोग ने याची को प्रमाण पत्र जारी नहीं किया और उसका नामांकन खारिज हो गया। याची ने 1 अप्रैल, 2019 को आयोग में प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कर दिया था, लेकिन नामांकन के आखिरी दिन 8 अप्रैल तक उसे प्रमाण पत्र नहीं दिया गया। याचिका में आयोग की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे, लेकिन एकलपीठ ने माना कि आयोग पर लगाए गए आरोपों से याचिकाकर्ता को मदद नहीं मिल सकती। कोर्ट ने याचिका को कॉस्ट के साथ खारिज कर दिया।