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जोधपुर

आलोचक मोहनकृष्ण बोहरा का कहना है कि ज्ञान के कक्ष मेंभाषाओं की खिड़कियां खुली रखें

जोधपुर.हिन्दी के प्रमुख आलोचक ( Hindi’s leading critic ) मोहनकृष्ण बोहरा ( Mohan krishna Bohra ) का कहना है कि साहित्यकारों को ज्ञान की खिड़कियां ( windows of knowledge ) खुली रखना चाहिए। उन्होंने पत्रिका से एक मुलाकात ( interview ) में यह बात कही।
 
 
 
 
 

जोधपुरAug 08, 2019 / 09:14 pm

M I Zahir

Critic Mohankrishna Bohra said that keep the windows of languages open

Critic Mohankrishna Bohra said that keep the windows of languages open

जोधपुर.हिन्दी के प्रमुख शीर्ष कवि व आलोचक ( Hindi’s leading critic ) अज्ञेय ( Agya ) ने जोधपुर को विश्व हिन्दी की प्रयोगशाला कहा था। इस प्रयोगशाला में कई भाषा वैज्ञानिक, कवि और आलोचक हुए, लेकिन उनमें से चंद लोगों ने साहित्य में अपना लोहा मनवाया। एेसा ही एक नाम है आचार्य मोहनकृष्ण बोहरा ( Acharya mohankrishna bohra )। उनका नाम देश के शीर्षस्थ हिंदी आलोचकों में शुमार किया जाता है। बोहरा सहज व सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं। अपनी साफगोई और सपाटबयानी के लिए जाने जाते हैं। साहित्य में जो बात सच है, वे वह कहने से कोई गुरेज नहीं करते। बोहरा निजी सम्बंधों और साहित्यिक रिश्तों में घालमेल नहीं करते, हां तालमेल जरूर रखते हैं। मोहनकृष्ण बोहरा ( Mohankrishna Bohra ) के अस्सीवें जन्म दिन पर उन पर केंद्रित ‘चौपाल’ पत्रिका के विशेषांक और उनकी हाल ही में प्रकाशित दो आलोचना कृतियों ‘रचनाकार का संकट’ और ‘समकालीन कहानी का वितान’ का 11 अगस्त को लोकार्पण होगा। पेश है पत्रिका की ओर से उनसे साहित्य पर की गई बातचीत (interview ) के संपादित अंश:

दायरे से बाहर नहीं आते

आचार्य ने एक सवाल के जवाब में कहा कि ज्ञान एक कक्ष होता है और उसमें भाषाएं खिड़कियां होती हैं, कक्ष है तो खिड़कियां खुली रखें। वह अपने दायरे से बाहर आ कर रुचिपूर्वक अध्ययन कर सकता है। ज्यादातर हिन्दी रचनाकार व आलोचक अपने दायरे से बाहर नहीं आते। जब कहानीकार की भीतर की इच्छा जागती है तो वह अपने दायरे से बाहर निकलता है। यह देखें कि हम क्या ग्रहण कर सकते हैं। रचनाकार अपने लिए निर्णय स्वयं कर लेगा।
अध्ययन का विस्तार करें
उन्होंने कहा कि साहित्यकार जिस फील्ड में हैं उसे पढे़ंऔर अध्ययन का विस्तार करें। सममकालीन भारतीय साहित्य की कहानियां पढ़ें। सिस्टर लैंग्वेजेज बंगाली, मराठी और पंजाबी सब पढ़ें। अगर आप अपने क्षितिज स्तर का विस्तार करना चाहते हैं तो विदेशी भाषा भी पढऩी चाहिए। अंग्रेजी और फ्रेंच कहानियां भी पढ़ें।
रचना की सीमा देखें
आचार्य ने कहा कि साहित्यकार के साहित्य का स्तर आदमी के पारिवारिक संस्कार, वातावरण और अध्ययन से तय होता है। किसी रचना की सीमा क्या है, यह देखना होगा। उसका निर्णय करना मुख्य बात है। सारे सवाल उससे हल हो जाते हैं। रचना ही मुख्य है। रचनाकार क्या चाहता है, यह प्रश्न दोयम है, बाकी बेमानी है। यह रचना की प्रकृति पर निर्भर करता है। समकालीन साहित्य के तकाजे कई बार साफ होते हैं और कई बार समकालीन साहित्य का तकाजा नजर नहंीं आता है, वह खोजना पड़ता है। कोई भी कवि समकालीनता के प्रति आंखें मूंदे नहीं रहता।
कवि समकालीनता के प्रति आंखें मूंदे नहीं रहता
उन्होंने कहा कि अगर हम माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएं मसलन ‘फूल की चाह’ देखें तो उसमें भी समकालीनता हो सकती है। एक बार किसी रचना में वह तत्व नहीं होता। कोई भी कवि समकालीनता के प्रति आंखें मूंदे नहीं रहता। सूरदास में समकालीनता दिखाई नहीं पड़ती, पर समग्र रूपेण विचार करने पर हम उसमें पाते हैं। इसलिए किसी रचनाकार की एक रचना से उसके बारे में फैसला नहीं होता।

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