बुजुर्गों की तुलना में युवाओं ने घर बैठे टेलीमेडिसिन के जरिए भी इलाज जारी रखा, जबकि बुजुर्ग इस पद्धति से अधिक परिचित नहीं होने से उन्हें ऑनलाइन परामर्श लेने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ा। विशेषकर गरीब बुजुर्गों के पास संसाधन भी नहंी थे, जबकि बीपी, डायबिटीज, ह्रदय रोग व हड्डी रोग जैसी समस्याएं बुजुर्गों में आम है।
अधिकांश बुजुर्ग कम्प्यूटर, मोबाइल और आइटी तकनीक से दूरी बनाए रखते हैं। बड़े शहरों में अकेले रहने वाले कई बुजुर्गों को ऑनलाइन शॉपिंग में परेशानी आई। जरुरत का सामान नहीं होने से उनकी रोजमर्रा जिंदगी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
– आर्थिक स्तर: कोविड का सर्वाधिक असर गरीब उम्रदराज लोगों पर दिखा। वे दवाइयों के साथ इम्यूनिटी बढ़ाने वाले पदार्थ खरीद नहीं सके।
– निवास: गांवों की तुलना में घरों में ही रहे शहरी बुजुर्ग सामाजिक सम्पर्क कटने से अवसाद में आ गए।
– सामाजिक समूह (जाति): निम्न जातियों में बुजुर्गों की देखभाल उच्च जातियों के अपेक्षा कम रही।
– वैवाहिक स्थिति: जीवनसाथी के बिना रहने वाले वृद्धजनों में एकाकीपन और निराशा हावी रही।
– निर्भरता: बच्चों पर अत्यधिक आर्थिक निर्भरता और मनचाहा न कर पाने की कशिश से खीझ पैदा हुई।
आइआइटी मद्रास के मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग के प्रो वीआर मुरलीधरन और आइआइटी जोधपुर के मानविकी विभाग के डॉ आलोक रंजन ने अध्ययन में पाया कि देश में बुजुर्गों को संभालने के लिए पुनर्वास की व्यवस्था लगभग नहीं के बराबर है। उन्होंने अपने अध्ययन को नीतिगत स्तर पर लागू करने पहल की है।
– 18.9 प्रतिशत बुजुर्गों के पास ही स्वास्थ्य बीमा
– 27.5 प्रतिशत 80 वर्ष या अधिक आयु वाले चलने-फिरने में असमर्थ
– 70 प्रतिशत आंशिक या पूर्ण रूप से दूसरों पर निर्भर
(आंकड़े नेशनल सैम्पल सर्वे के)