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बैंगलोर

अब मिर्च-मेथी में नहीं लगेगी फंगस, किसानों की आय बढ़ाने में भी मददगार साबित होगी ये तकनीक

कृषि विश्वविद्यालय ने ईजाद की लो-कॉस्ट वॉकिंग टनल तकनीक
फंगस की वजह से निर्यात मे आती थी परेशानी
विश्व प्रसिद्ध जोधपुर की मिर्च अब फंगस के कारण रिजेक्ट नहीं हो सकेगी।

बैंगलोरMar 11, 2017 / 05:30 pm

Nidhi Mishra

fungus free crop

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मिर्च में फंगस की मात्रा होने के कारण पिछले कुछ समय से निर्यात में परेशानी आ रही थी, इस वजह से टेस्टिंग के दौरान कंटेनर्स रिजेक्ट कर दिए जाते थे, लेकिन मिर्च में फंगस की परेशानी अब दूर होगी। इसके लिए मण्डोर स्थित कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने तकनीक ईजाद की है। वॉकिंग टनल व हाई टनल तकनीक से फंगस रहित मिर्च तैयार होगी। इस तकनीक का परीक्षण मण्डोर स्थित कृषि अनुसंधान केन्द्र पर किया जा रहा है, जिसके परिणाम सकारात्मक रहे हैं। निश्चित ही यह पश्चिमी राजस्थान में जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर, जालोर आदि जिलों के मसाला उत्पादक किसानों के लिए खुशखबर है।
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लागत घटाएगी व गुणवत्ता में वृद्धि

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले जिलों में मसाला उत्पादक किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या सिंचाई और बिजली की है। विश्वविद्यालय ने फसल की प्रति हैक्टेयर लागत घटाने और उत्पादन के साथ गुणवत्ता की वृद्धि के लिए यह तकनीक विकसित की है, जो किसानों की आय बढ़ाने में कारगर साबित होगी। विकसित तकनीक में मिर्च-मैथी सहित अन्य मसाला फसल में वॉकिंग टनल तकनीक है। इस तकनीक में बिजली की खपत बिल्कुल नहीं है।
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5 दिन में सूख जाएगी मिर्च

किसानों के सामने तुड़ाई के बाद मिर्च की गुणवत्ता को बरकरार रखना सबसे बड़ी समस्या होती है। किसान मिर्च की तुड़ाई करके खेत अथवा खलिहान में सुखाते हैं। जमीन के संपर्क में आने पर एफ्लाटॉक्सिन नामक फंगस पैदा हो जाता है, यह फंगस नमी, ओस व बारिश के कारण पनपता है। इससे मिर्च का रंग उड़ जाता है। साथ ही मिर्च सूखने में 15-20 दिन का समय लगता है। इस समस्या को देखते हुए कृषि विश्वविद्यालय ने वॉकिंग टनल का उपयोग मिर्च व मैथी की फसल के लिए किया है।
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वॉकिंग टनल का अंदर का तापमान 12-15 सेंटिग्रेड बढ़ जाता है। साथ ही, धूप सीधे संपर्क में नहीं आती है, इससे रंग नहीं उड़ता है। इस विधि से मिर्च 5 दिन और मैथी 2 दिन में सूखकर तैयार हो जाती है। आज भी नागौर की मैथी प्रसिद्ध है, जबकि नागौर की मैथी को कसूरी मैथी कहकर मार्केटिंग की जा रही है, लेकिन कसूर क्षेत्र पाकिस्तान में है, जहां पैदा होने वाली मैथी से नागौर की मैथी से कोई संबंध नहीं है।
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सस्ती तकनीक

मसाला परियोजना प्रभारी डॉ. एमएल महरिया ने बताया कि यह बहुत ही सस्ती तकनीक है, जो किसान अपने गांवों में स्थनीय स्तर पर आम कारीगर से तैयार करवा सकते है। इसमें लोहे के आधा इंच के पाइप व पॉलीथिन का उपयोग होता है।
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इनका कहना है

विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मिर्च व मैथी की फसलों के लिए वॉकिंग व हाई टनल तकनीक विकसित की है। जो कम लागत वाली है। इस तकनीक से जोधपुर की मिर्च और नागौर की मैथी का रंग बरकरार रहेगा, गुणवत्ता बनी रहेगी और इस वजह से किसानों को अच्छे दाम भी मिलेंगे। -डॉ. बलराज ङ्क्षसह, कुलपतिकृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर

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