जैसलमेर से आए ८० वर्षीय बीराराम को गैस व पेट की अन्य बीमारी के बाद भर्ती कर लिया, लेकिन वार्ड में ले जाने के लिए ट्रॉली नहीं थी। परिजन इधर-उधर हाथ पांव मारते रहे। पत्रिका टीम ने फर्श पर लेटे मरीज का फोटो लिया तो सुपरवाइजर ने आकर ट्रोली उपलब्ध करवाई और ट्रॉलीमैन भी।
अस्पताल में ओपीडी का समय खत्म होने के बाद दोपहर की शिफ्ट में छह ट्रॉली मैन लगाए गए हैं, लेकिन अधिकांश मरीजों को न तो ट्रोली मिलती है नहीं ट्रॉलीमैन। सभी ट्रोलियां ट्रोमा सेंटर के अंदर घुसते ही छह नंबर कमरे में पड़ी रहती है।
डॉ. महेन्द्र आसेरी, अधीक्षक, एमडीएम अस्पताल