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Pakistan: यूं भर रहे हैं बदहाली में फंसे पड़ोसी का खजाना

Pakistan: पाकिस्तान पर इनायत और विस्थापितों पर ये जुल्म क्यों? -नियमों के मक्कड़जाल में उलझ गई नागरिकता

जोधपुरJun 27, 2022 / 08:47 pm

जय कुमार भाटी

Pakistan: यूं भर रहे हैं बदहाली में फंसे पड़ोसी का खजाना

Pakistan: यूं भर रहे हैं बदहाली में फंसे पड़ोसी का खजाना

Pakistan: सुरेश व्यास/जोधपुर। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के नियम बने नहीं और इधर धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हो भारत आए पाकिस्तानी हिंदू विस्थापितों को नागरिकता का मसला जटिल नियमों के मक्कड़जाल में उलझता जा रहा है। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य के आठ जिला कलक्टरों को नागरिकता देने के लिए अधिकृत किया हुआ है, फिर भी प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर रह रहे करीब 22 हजार से ज्यादा विस्थापितों की उम्मीदें दम तोड़ रही है।
पाक विस्थापितों को नागरिकता में सबसे बड़ी बाधा उनका पाकिस्तानी पासपोर्ट है। नियम ऐसे हैं कि जब तक ये विस्थापित पाकिस्तानी दूतावास से पासपोर्ट का नवीनीकरण करवा कर प्रमाण पत्र नहीं ले आते, आवेदन आगे नहीं बढ़ता। जबकि पासपोर्ट का नवीनीकरण ही इनके लिए सबसे बड़ी बाधा है। दिल्ली जाकर प्रति पासपोर्ट करीब 10 हजार रुपए फीस चुकानी पड़ती है। परिवार के दस लोगों को नवीनीकरण करवाना है तो कम से कम एक से सवा लाख रुपए की व्यवस्था करनी पड़ती है, जो इन गरीब पाक विस्थापितों के वश की बात नहीं है। यह दिक्कत साल 2009 या इसके बाद आए उन पाक विस्थापितों की है, जिनके पासपोर्ट की अवधि खत्म हो चुकी है। ताज्जुब की बात तो यह है कि यह राशि पाकिस्तानी खजाने में जा रही है।
आठ कलक्टर अधिकृत
गृह मंत्रालय ने साल 2018 में पाक विस्थापितों के नागरिकता आवेदन की प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी थी। इसके साथ ही राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर व जयपुर समेत सात राज्यों के 16 जिला कलक्टर्स को नागरिकता देने के लिेए अधिकृत कर दिया। इसके बाद पिछले साल मई में राज्य के बाड़मेर, पाली, जालोर, सिरोही व उदयपुर के कलक्टर्स को भी नागरिकता अधिकार दे दिए गए। फिर भी इन जिलों में नागरिकता के हजारों प्रकरण लम्बित हैं।
फंसे दो एजेंसियों के बीच
आमतौर पर पाकिस्तानी अल्पसंख्यक उत्पीड़न से बचने के लिए धार्मिक या विजिटर वीजा लेकर आते हैं। गारंटर वीजा में यहां रहने वाला कोई रिश्तेदार पाकिस्तान से आ रहे लोगों की गारंटी लेता है। रजिस्ट्रेशन के दौरान गारंटर का पता लिखा जाता है। चूंकि ये लोग स्थाई रूप से भारत में रहने के लिए आते हैं और रिश्तेदार ज्यादा दिन नहीं रखता तो फिर आस पास की बस्तियों में रहकर मजदूरी करके परिवार चलाते हैं। जब नागरिकता की बात आती है तो आईबी अपनी रिपोर्ट में लिख देता है कि निर्धारित पते पर नहीं मिला, जबकि राज्य की गुप्तचर पुलिस सकारात्मक रिपोर्ट देती है। यही विरोधाभास नागरिकता में बाधा बन जाता है।
कहां कितने आवेदन लम्बित
जोधपुर——–18006
जैसलमेर—— 2341
जयपुर——— 813
जोधपुर ग्रामीण—- 691
बाड़मेर——— 322
जालोर——— 132
उदयपुर ——- 130
सिरोही ——– 81
पाली——-72
हनुमानगढ़—–59
कुल—–22,819*
(शेष 172 आवेदन प्रदेश के अन्य जिलों में लम्बित, आंकड़े अप्रेल 2021 तक इसके बाद नए विस्थापितों की संख्या नगण्य है)
लचीलापन दिखाने की जरूरत
हजारों विस्थापितों की नागरिकता का लंबित मुद्दा चिंताजनक है। सरकार जरा सा लचीलापन अपनाकर इन लोगों को राहत दे सकती है। पासपोर्ट नवीनीकरण की अनिवार्यता की बजाय शपथ पत्र लेकर काम चलाया जा सकता है। इसी आधार पर राज्य सरकार ने 2004-05 में 13 हजार लोगों को नागरिकता दी ही है। अब तो केंद्र के नियम भी काफी बदलें है, लेकिन सोच बदलने की जरूरत है। पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न किसी से छिपा नहीं है। एक बात और है कि पाक अल्पसंख्यक हिंदूओं के पास ले-देकर सिर्फ भारत ही पहली और आखिरी उम्मीद के तौर पर बचता है. लेकिन यहां भी उनके साथ पूरा न्याय नहीं हो पा रहा।
-हिंदूसिंह सोढ़ा, अध्यक्ष, सीमांत लोक संगठन, जोधपुर

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