गृह मंत्रालय ने साल 2018 में पाक विस्थापितों के नागरिकता आवेदन की प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी थी। इसके साथ ही राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर व जयपुर समेत सात राज्यों के 16 जिला कलक्टर्स को नागरिकता देने के लिेए अधिकृत कर दिया। इसके बाद पिछले साल मई में राज्य के बाड़मेर, पाली, जालोर, सिरोही व उदयपुर के कलक्टर्स को भी नागरिकता अधिकार दे दिए गए। फिर भी इन जिलों में नागरिकता के हजारों प्रकरण लम्बित हैं।
आमतौर पर पाकिस्तानी अल्पसंख्यक उत्पीड़न से बचने के लिए धार्मिक या विजिटर वीजा लेकर आते हैं। गारंटर वीजा में यहां रहने वाला कोई रिश्तेदार पाकिस्तान से आ रहे लोगों की गारंटी लेता है। रजिस्ट्रेशन के दौरान गारंटर का पता लिखा जाता है। चूंकि ये लोग स्थाई रूप से भारत में रहने के लिए आते हैं और रिश्तेदार ज्यादा दिन नहीं रखता तो फिर आस पास की बस्तियों में रहकर मजदूरी करके परिवार चलाते हैं। जब नागरिकता की बात आती है तो आईबी अपनी रिपोर्ट में लिख देता है कि निर्धारित पते पर नहीं मिला, जबकि राज्य की गुप्तचर पुलिस सकारात्मक रिपोर्ट देती है। यही विरोधाभास नागरिकता में बाधा बन जाता है।
जोधपुर——–18006
जैसलमेर—— 2341
जयपुर——— 813
जोधपुर ग्रामीण—- 691
बाड़मेर——— 322
जालोर——— 132
उदयपुर ——- 130
सिरोही ——– 81
पाली——-72
हनुमानगढ़—–59
कुल—–22,819*
(शेष 172 आवेदन प्रदेश के अन्य जिलों में लम्बित, आंकड़े अप्रेल 2021 तक इसके बाद नए विस्थापितों की संख्या नगण्य है)
हजारों विस्थापितों की नागरिकता का लंबित मुद्दा चिंताजनक है। सरकार जरा सा लचीलापन अपनाकर इन लोगों को राहत दे सकती है। पासपोर्ट नवीनीकरण की अनिवार्यता की बजाय शपथ पत्र लेकर काम चलाया जा सकता है। इसी आधार पर राज्य सरकार ने 2004-05 में 13 हजार लोगों को नागरिकता दी ही है। अब तो केंद्र के नियम भी काफी बदलें है, लेकिन सोच बदलने की जरूरत है। पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न किसी से छिपा नहीं है। एक बात और है कि पाक अल्पसंख्यक हिंदूओं के पास ले-देकर सिर्फ भारत ही पहली और आखिरी उम्मीद के तौर पर बचता है. लेकिन यहां भी उनके साथ पूरा न्याय नहीं हो पा रहा।
-हिंदूसिंह सोढ़ा, अध्यक्ष, सीमांत लोक संगठन, जोधपुर