न्यायाधीश विजय विश्नोई, अरुण भंसाली तथा दिनेश मेहता अधिवक्ताओं के साथ चहलकदमी करते हुए हेरिटेज परिसर में उन अधिवक्ता चैम्बर्स में भी गए, जहां कभी बतौर अधिवक्ता उन्होंने काम किया था।
लंबे समय तक हेरिटेज भवन में प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ताओं का कहना है कि इस प्रांगण से विदा लेने की सोचने मात्र से मन भारी हो जाता है, परंतु सतत विकास और जरूरत को देखते हुए नवीनता को अंगीकार करना भी जरूरी है। राजस्थान हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रणजीत जोशी ने कहा, पिछले चालीस साल तक यह भवन उनकी कर्मभूमि रहा है। इसे छोड़ते वक्त मन में दुख है। यहां बिताए पल हमेशा याद रहेंगे, लेकिन परितर्वन प्रकृति का नियम है। हमें और बेहतर भविष्य और सुविधाओं की ओर भी देखना है। असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया संजीत पुरोहित ने कहा, इन दो दशक में यहां प्रैक्टिस करते हुए मैंने इस हेरिटेज भवन में हमेशा एक ऊर्जा और प्रेरणा पाई है। इसे भुलाना वाकई मुश्किल है। राजस्थान हाईकोर्ट लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील जोशी ने कहा कि आज ऐसा महसूस हुआ, जैसा किसी पिता को अपनी बेटी के विदाई पर होता है। यह हमारे लिए भावनात्मक समय है कि हम अपनी एक कर्मभूमि छोडकऱ नई कर्मभूमि के लिए कदम बढ़ा रहे हैं। अतिरिक्त महाधिक्ता संदीप शाह का कहना है कि यह भावुक करने वाला पल है। अब हमें नए भवन में जाना है, पर हम इस हेरिटेज भवन से भी जुड़े रहेंगे। बार कौंसिल ऑफ राजस्थान के सदस्य बलजिंदरसिंह संधू ने कहा, हेरिटेज भवन ने न केवल न्याय के मंदिर की प्रतिष्ठा अर्जित की, बल्कि इसका शिल्प हमें आकर्षित करता रहेगा।
राजस्थान हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन की ओर से शाम को हाईकोर्ट परिसर में आयोजित विशेष कार्यक्रम में जस्टिस एन.एन. माथुर ने ऐतिहासिक भवन की विरासत और नए भवन की खासियत पर वकीलों के बीच अपनी बात रखी। अधिवक्ता के रूप में हम सब यहीं पले-बढ़े हैं। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के नए भवन में पुराने भवन की आत्मा है। पुराने भवन में जिस तरह कोर्ट रूम आमने-सामने बने हुए हैं, जिससे वकीलों को एक से दूसरे कोर्ट में आने-जाने में आसानी रहती है, उसी तरह की सुविधाओं का खयाल नए हाईकोर्ट में रखा गया है। उन्होंने जस्टिस गोपालकृष्ण व्यास द्वारा इस खास मौके पर लिखी गई कविता की पंक्तियां भी सुनाई।