इसी अभियान के तहत अलग-अलग औद्योगिक सेक्टर से प्रतिनिधि, औद्योगिक संगठन के लोगों के साथ सरकारी अधिकारियों व एक्सपर्ट की एक वेबीनार सोमवार को आयोजित की गई। सभी ने एक स्वर में कहा कि श्रमिकों का जो पलायन हो रहा है, वह टू-वे यानि आने-जाने का दोनों तरफ होना चाहिए। श्रमिकों के पलायन का माहौल बना है, लेकिन यही श्रमिक वापस भी आना चाहते हैं, जिनके लिए कोई कदम नहीं उठाए गए हैं।
इसके साथ ही बड़ी आबादी जो कृषि पर निर्भर है वो देश की अर्थव्यवस्था को सहारा देने में जुटी हुई है। इस विकट स्थिति में ग्रामीण अर्थव्यवस्था, जैविक खेती, पशुपालन आदि नए विकल्प हो सकते हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था को बचाने में योगदान दे रहे हैं।
उद्यमियों के विचार
श्रमिकों का पलायन चुनौती है। शहर में आए भी काफी है। लघु उद्योग भारती ने श्रमिकों को रोजगार-स्वरोजगार दिलाने के लिए वेबसाइट लांच की है, जो मददगार साबित होगी। जैविक उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मन को मजबूत कर ज्यादा कीमत देने के लिए तैयार होना होगा।
घनश्याम ओझा, प्रदेशाध्यक्ष, लघु उद्योग भारती
अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कृषि आधारित, ग्रामोद्योग व हस्तशिल्प को प्रमोट करना होगा। डेयरी उद्योग व जैविक खेती भी वर्तमान समय में अच्छा विकल्प बन सकता है। जो श्रमिक आए हैं, उन्हें भी उनकी स्किल अनुसार प्रशिक्षण देकर रोजगार देने का प्रयास करेंगे।
सुनिल परिहार, पूर्व अध्यक्ष, राजसिको
अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार को असुरक्षा से सुरक्षा, अविश्वास से विश्वास, भय से निर्भय का वातावरण बनाना होगा। ग्रामीण विकास के विकल्पों जैविक खेती, पशुपालन, मूल्य संवर्धित उत्पाद जैसे उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। इससे निश्चित ही अर्थव्यवस्था पटरी पर आएगी।
प्रो महेन्द्रसिंह राठौड़, पूर्व अध्यक्ष, जोधपुर विकास प्राधिकरण
हैण्डीक्राफ्ट कृषि के बाद रोजग़ार देने वाला सबसे बड़ा सेक्टर है। केंद्र और राज्य सरकार ने इस सेक्टर को अनदेखा किया है। इस वर्ष कुल निर्यात का 50 प्रतिशत कम निर्यात होगा। स्किल डवलपमेंट लांग टर्म के लिए अच्छा विकल्प साबित होगा, वर्तमान में या शॉर्ट टर्म के लिए यह काम नहीं करेगा।
डॉ भरत दिनेश, अध्यक्ष, जोधपुर हैण्डीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन
आने वाला 1 वर्ष का समय डोमेस्टिक टूरिज्म का रहेगा। सरकार को पधारो म्हारे देश के साथ ही पधारो म्हारे गांव का नारा अपनाना होगा। स्थानीय श्रमिकों को होटल इंडस्ट्री के लिए तैयार करने के लिए होटल इंडस्ट्री व आरटीडीसी मिलकर 3 महीने का सर्टिफि केट कोर्स आयोजित करके इन्हें प्रशिक्षित कर सकते हैं।
जेएम बूब, अध्यक्ष, जोधपुर होटल्स एण्ड रेस्टोरेंट एसोसिएशन
मजदूरों का पलायन बड़ा संकट है। फैक्ट्रियों में 20- 25 प्रतिशत मजदूर बचे है। ऐसी स्थिति में उद्यमी इंडस्ट्री कैसे चलाएंगे। ऐसे समय में सरकार को मजदूरों को वापस बुलाने के लिए योजना बनाकर उन्हें लाना चाहिए। जिससे उन्हें इंडस्ट्री में लगाया जा सके अन्यथा उद्योग आगामी 6 महीने तक अपनी क्षमता अनुसार शुरू नहीं हो पाएंगे।
अशोक बाहेती, अध्यक्ष, जोधपुर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन
उद्योगों को वापस पटरी पर लाने के लिए अनेक परेशानियां आ रही है। श्रमिकों के पलायन करने से उद्योगों के समक्ष श्रमिकों की समस्या हल करने के लिए केन्द्र व राज्य सरकार को प्रयास करने चाहिए। विद्युत बिलों में लगने वाले फि क्स चार्जेज व अन्य प्रभारी शुल्क माफ किए जाने चाहिए।
ज्ञानीराम मालू, अध्यक्ष, मरुधरा इंडस्ट्रीज एसोसिएशन
कोरोना ऐसी महामारी बन गई है कि हमको लंबे समय तक इस बीमारी के साथ रहना होगा। ऐसे में सरकार से निवेदन है कि रेड जोन, कंटेनमेंट क्षेत्रों का दायरा छोटा करे। मजदूरों की कमी को दूर करने के लिए ट्रेनें चलने के बाद बाहर के राज्यों में केम्प लगाए, मजदूर लाए, ताकि उद्योग सुचारु चल सके।
जीके गर्ग, मैनेजिंग ट्रस्टी, जोधपुर प्रदूषण निवारण ट्रस्ट
सरकारी अधिकारियों के विचार
सरकार इस महामारी अर्थव्यवस्था की धुरी कहे जाने वाले उद्योगों के विकास के लिए प्रयासरत है। राजस्थान कौशल व आजीविका विकास मिशन की ओर से सरकार को अलग-अलग फील्ड के 4 लाख प्रशिक्षित लोगों की सूची उपलब्ध कराई गई है, इसमें जोधपुर के 9 हजार से अधिक शामिल है। औद्योगिक संगठन इनका उपयोग कर इन्हें रोजगार देकर श्रमिकों की कमी को काफी हद तक दूर कर सकती है।
एसएल पालीवाल, संयुक्त निदेशक, जिला उद्योग केन्द्र
विषम परिस्तिथियों में श्रमिकों के पलायन के दौरान सीमित श्रमिकों के साथ उद्योग चलाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। सकारात्मक सोच के साथ राजस्थान में पलायन कर आए यहां के श्रमिकों व मानव संसाधन का उपयोग कर उद्योगों को विधिपूर्वक चलाने की पहल की जा सकती है। रीको मुख्यालय की ओर से उद्योगों के लिए विशेष पैकेज तैयार किया जा रहा है, जिसका निश्चित ही फायदा मिलेगा।
संजय झा, वरिष्ठ क्षेत्रीय प्रबंधक, रीको जोधपुर
लॉकडाउन में सबसे ज्यादा हालत खराब खनन मजदूरों की है। सरकार व प्रशासन खनन मजदूरों को सही राशन तक नहीं पहुंचा पाई। खनन मजदूरों के लिए डीएमएफटी में आवंटित फण्ड का भी उपयोग नहीं हो पाया। हाल यह है कि मजदूरों के हित की बात करने वाली सरकार के पास खनन मजदूरों के रिकॉर्ड तक नहीं है।
राणासेन गुप्ता, प्रबंध न्यासी, खान मजदूर सुरक्षा अभियान ट्रस्ट
लॉकडाउन में सबसे ज्यादा प्रभावित मजदूर-श्रमिक वर्ग हुआ है। आज मजदूरों के पास काम नहीं है। मजदूर काम के लिए तैयार बैठी है, लेकिन सरकार की ओर से इन मजदूरों को काम दिलाने के लिए सुनियोजित योजना नहीं है। सरकार को प्राथमिकता से मजदूरों पर आए संकट का हल निकालना चाहिए।
एलएन जालानी, बैंककर्मी नेता
इन पर भी हुई चर्चा
– जैविक खेती
– विद्युत फिक्स चार्जेज
– जीएसटी, रिफण्ड
– ग्रामीण अर्थव्यवस्था