229 साल प्राचीन है जोधपुर का प्रख्यात कुंजबिहारीजी का मंदिर, धूमधाम से मनाया जाता है तीज का त्यौहार मंदिर में प्रतिवर्ष जन्माष्टमी महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। उत्सव के दौरान चांदी से निर्मित विशेष झूले में ठाकुरजी को विराजित किया जाता है। मंदिर परिसर में भगवान कृष्ण की विविध लीलाओं से जुड़े आकर्षक भित्ति चित्र मौजूद हैं। इनमें कृष्ण जन्म, गोचारण लीला, पालने में यशोदानंदन, सूरदास के साथ बालकृष्ण के चित्र प्रमुख है। मंदिर के मध्य भाग में एक फव्वारा भी है, जिसे विशेष उत्सव पर आरंभ किया जाता है।
दहेज में मिले थे ‘श्यामजी’, राव गांगा ने मंदिर बनवाया तो बन गए ‘गंगश्यामजी’ लाल घाटू के पत्थरों से निर्मित मंदिर के मध्य भाग की ऊंचाई करीब 40 फीट है। रानी उमराव कंवर महाराजा के स्वर्गवास के बाद भगवान श्रीकृष्ण को ही अपना आराध्य मानकर सेवा पूजा करने लगी थी। रानी उमराव कंवर ने मंदिर के निर्माण के साथ एक कृष्ण कुंज नोहरा और उसमें एक बेरे का निर्माण करवाया था। संवत 1988 याने 1931 के माघ सुदी दशमी को महाराजा उम्मेदसिंह के सान्निध्य में मंदिर में ठाकुरजी राधे-गोविन्द की मूर्ति की प्रतिष्ठा की गई।
मेहरानगढ़ प्राचीर से ‘राजरणछोड़’ की आरती के दर्शन करती थी रानी राजकंवर, प्रसिद्ध है जोधपुर का यह कृष्ण मंदिर रानी उमराव कंवर ने वृंदावन में भी अपने आराध्य देव का मंदिर व घाट बनवाया तथा वहीं पर अपने आराध्य के ध्यान में मंदिर की सीढिय़ों पर अपने प्राण त्याग दिए थे। वर्तमान में मंदिर का संचालन व देखरेख मांजी चौहानजी साहिबां रिलिजियस ट्रस्ट की ओर से किया जाता है।