ऐसे में प्रदेश के 35 जिला रसद कार्यालयों में कार्यरत आरएएस स्तर के जिला रसद अधिकारी गेहूं का ही हिसाब-किताब देख रहे हैं। राज्य सरकार ने अगस्त में प्रदेश के 33 में से जोधपर सहित 11 जिलों में केरोसीन आवंटन शून्य कर दिया है। इस महीने 1716 (12 के गुणांक में) किलोलीटर केरोसिन आवंटित किया गया है। जबकि चार साल पहले अगस्त 2015 में यह 4 लाख, 10 हजार किलोलीटर था। उज्ज्वला योजना के अंतर्गत गांवों में घरेलू गैस पहुंचने से धीरे-धीरे शेष जिलों में भी केरोसिन वितरण बंद कर दिया जाएगा। पेट्रोल पंप और रसोई गैस एजेंसी से सम्बंधित काम भी दो साल से पेट्रोलियम कम्पनियां नियंत्रित कर रही हैं।
1960 में यह मिलता था राशन की दुकान पर
1 बादाम, काजू, पिस्ता राशन की दुकान पर 7 से 8 रुपए प्रति किलो मिलते थे।
2 मुश्ती शक्कर 85 पैसे प्रति किलो और गुड़ इससे भी सस्ता था।
3 इरेसमिक कम्पनी की शेविंग ब्लेड एक राशन कार्ड पर एक मिलती थी।
4 साइकल के टायर-ट्यूब भी राशन डीलर्स बेचते थे। टायर 5 रुपए का आता था।
5 राशन डीलर्स वनस्पति तेल और पाम ऑयल भी बेचते थे।
6 राशन की दुकानों पर खादी के कपड़े व लठ्ठे भी मिलते थे। धोती का एक जोड़ा 18 रुपए का था।
7 साठ के दशक में गेहूं की आपूर्ति कम होने पर राशन डीलर्स ने लाल ज्वार भी बेची।
8 1 रुपए में गेहूं के दो डिब्बे आते थे, जिसमें करीब 4 किलो गेहूं होता था। मूंग, मोठ, मसूर, उड़द व अरहर की दाल भी मिलती थी।
9 साबुत चना भी मिलता था।
10 कु छ समय के लिए दूध पाउडर भी बेचा गया। चाय पत्ती भी मिलती थी।
11 स्कूल व कॉलेज के छात्र छात्राओं के लिए कॉपी व रजिस्टर भी बिक्री के लिए उपलब्ध थे।
(जैसा 72 वर्षीय राशन डीलर लाला केशवनाथ जोशी ने बताया। लाला 1971 से राशन डीलर हैं।)
1956 में खुली थी जोधपुर में पहली राशन दुकान जोधपुर में राशन की पहली दुकान 1956 में मैसर्स धनराज जानकीलाल के नाम से खोली गई। उसके बाद स्वतंत्रता सेनानी पाउलाल राठी को दुकान मिली। इसके बाद अमृतलाल व नारायण सिंधी को राशन की दुकान आवंटित की गई। लाला केशवनाथ कहते हैं कि वे स्वयं ही पीले रंग के राशन कार्ड बनाकर लोगों को देते थे। गेहूं के लिए टोकन दिया जाता था।