वर्तमान में इस तीर्थ की सार-संभाल कर रहे राजूराम गहलोत ने बताया कि प्राचीन समय में केसरपुरी नाम के साधु यहां आकर साधना करते थे। एेसे में उनके ढेरों शिष्य उनकी सेवा करने के लिए साथ रहते। घंटो समाधिस्त रहने के कारण एक दिन उनके एक शिष्य ने आशंकित होकर उनके दिवंगत होने की सूचना फैला दी और उन्हें जीवित ही समाधि बनवा दी। जब संत वापस अपनी समाधि से उठने को हुए तो उन्हें अपना शरीर स्थान पर नहीं मिला। घोड़ों की टाप से उन्होंने अपने जीवित होने का प्रमाण शिष्य को दिया तो वह ग्लानि से भर गया। अपराधबोध से ग्रस्त शिष्य ने वहां दो मंजिला समाधि का निर्माण करवाया। तब से यह क्षेत्र जोगी तीर्थ नाम से प्रसिद्ध हुआ।
आबादी क्षेत्र से दूर स्थित इस धार्मिक स्थल पर कई बार समाजकंटकों के आने का अंदेशा रहता है। एेसे में यहां पर्याप्त रोशनी और सीसीटीवी कैमरे से सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए।
– मुकेश परिहार, क्षेत्रवासी