जोधपुर के महाराजा मानसिंह के समय करीब 200 साल पहले जिस श्लील गायन की कला ने परवान देखा उस कला को 200 साल बाद अवाम की जुबां तक ले जाने का श्रेय गायक मारवाड़ रत्न माइदास को जाता है। जोधपुर में लंबे अर्से तक श्लील गाली गायन की परम्परा में कोई बड़ा कलाकार नहीं हुआ जिसने माइदास की तरह अपने आप को स्थापित किया। उन्हें श्लील गाली गायन के क्षेत्र का अमिताभ बच्चन भी कहा जाता था। रेलवे कर्मचारी रहे माइदास ने श्लील गाली गायन परम्परा को न केवल जोधपुर के आमजन बल्कि शहर से बाहर और प्रदेश स्तर पर एक नई पहचान देकर गायकी को नए आयाम, मुकाम दिया। उनकी नई सोंच और खनकदार आवाज ने न केवल श्लील गायन से लोगों में नई उर्जा, उत्साह का संचार करते थे बल्कि लोगों के दिलो दिमाग में वर्ष पर्यन्त छाए रहते थे। राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोराणा ने श्लील गाली गायक माईदास थानवी के निधन को मारवाड़ के पारम्परिक होरी लोक गायन क्षेत्र व सांस्कृतिक विरासत की अपूरणीय क्षति बताया। उन्हें राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के कला पुरोधा सम्मान से सम्मानित किया गया था। पर्यावरणविद रामजी व्यास ने बताया कि माइदास की गायकी के प्रशंसक उन्हें दूसरे राज्यों से श्लील गायन के लिए आमंत्रित करते थे। मारवाड़ की लोकसंस्कृति के संरक्षण में उनका अभूतपूर्व योगदान हमेशा याद किया जाएगा। मंडलनाथ मेला आयोजन में भी बतौर मंडलनाथ ट्रस्ट अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाते रहे। बेली फ्रेंड्स क्लब के मनोज बेली ने माईदास के निधन पर कहा कि उभरते युवा गेर गायक माईदास से प्रेरणा लेकर गायन की शुरुआत की थी। उनके निधन पर मंडलनाथ मंदिर ट्रस्ट के मंडलदत्त थानवी, गुरुदत्त पुरोहित, प्रेमकुमार जोशी, श्यामसुंदर बाजक, राजेन्द्र वल्लभ व्यास, भाजपा शहर जिलाध्यक्ष देवेन्द्र जोशी, राज्यसभा सदस्य राजेन्द्र गहलोत, केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्रसिंह शेखावत ने भी शोक जताया।
आज भी गाई जाती है मानसिंह रचित गालियां
मारवाड़ की संस्कृति समूचे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखती है और यहां होली पर गाई जाने वाली श्लील गाली – गायन की परंपरा भी बहुत प्राचीन है। महाराजा मानसिंह रचित गाली नखराली ए ब्याण आवै, सिकरो, नवरंगी ऐ चिडयि़ा बोले चूं … खूब खुली केसर री क्यारी जैसी पारंपरिक गालियां खासी प्रचलित रही। गायक माईदास थानवी की ओर से ‘समधण सेजां में , मेढकों पकड़े रेÓ लायों लायों सगीजी, काफी लोकप्रिय रहे। मारवाड़ में महाराजा मानसिंह के अनेक पद व भजन लोकप्रचलित हैं तो उनकी रचित गालियां भी बहुत लोकप्रिय रही हैं । उनके भजनों में होरियों की संख्या भी काफी है । फाल्गुन मास में मन्दिरों , सत्संग में आज भी महाराजा मान की होरियों का गायन किया जाता है