राव जोधा ने दुर्ग की नींव रखी इतिहास के मुताबिक राव रणमल की मृत्यु के बाद उनके 24 वें पुत्र राव जोधा ने दुर्ग की नींव रखी। फिर जोधपुर-दुर्ग पर परकोटा जयपोल बनवाया गया। दुर्ग में विक्रय केन्द्र, कला दीर्घाएंं हैं। इनमें टरबन गैलरी, पेंटिंग गैलरी और लोक संगीत वाद्य यंत्र गैलरी प्रमुख हैं। यहां मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट की गैलरी और महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश अहम हैं। दुर्ग में रखा गया नायाब मरातिब दर्शनीय है। मगरमच्छ के मुंह, मछली की सी शक्ल और चांद की कलंगी से युक्त यह मरातिब सन 1628 में शाहजहां ने जोधपुर के महाराजा गजसिंह को दिया था। आर्मोरी में कई राजाओं की गोल्ड और सिल्वर वर्क की तलवारें,गन, शील्ड हैं। यहां अकबर और तैमूर की तलवारें भी हैं तो करीब 7 पौंड का राव जोधा का खांडा भी है। यहां म्यूजियम में 1828 के शिव पुराण का फोलियो भी है।
किला फैक्टफाइल
दुर्ग की दीवार की चौड़ाई : 12 से 17 फुट किले की दीवार की लंबाई : 20 से 150 फुट ऊंची
अधिकतम चौड़ाई : 750 फुट
अधिकतम लंबाई : 1500 फुट
तलहटी में सवाई राजा सूरजसिंह ने मोतीमहल महल बनवाया : 1595 से 1699 ईस्वीं
महाराजा अजीतसिंह ने बनवाई फतेहपोल : 1707 में
महाराजा विजयसिंह के समय पूरी बनी लोहापोल: 1752 ईस्वीं में दुर्ग के बारूदखाने पर बिजली गिरी : 1857 में
जसवंतसिंह ने प्रथम राजकीय औषधालय बनवाया : 1912 ईस्वीं में
इतिहासकार विश्वेश्वरनाथ रेऊ ने पुस्तकालय खोला : 1 अक्टूबर 1916 में मेहरानगढ़ दुर्ग़ में संग्रहालय : 1922 में