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जोधपुर

नहीं की जा सकती गर्भस्थ शिशु के अधिकार की अनदेखी

-हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, 26 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति से इनकार
– बलात्कार पीडि़ता के बच्चे को मिलेगी मातृत्व की छांव, नवजीवन संस्थान बनेगा पालनहार

जोधपुरOct 19, 2019 / 08:58 pm

yamuna soni

नहीं की जा सकती गर्भस्थ शिशु के अधिकार की अनदेखी

नहीं की जा सकती गर्भस्थ शिशु के अधिकार की अनदेखी

जोधपुर.

राजस्थान हाईकोर्ट (rajasthan highcourt) ने एक अपूर्व निर्णय में 26 सप्ताह से गर्भवती नाबालिग (Minors pregnant from 26 weeks) का गर्भ गिराने की अनुमति (Permission to conceive) देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि जीवन लेने वाले को भी यह खूबसूरत दुनिया निहारने का हक है। वह भी तब, जबकि नवजात के लालन-पालन के लिए एक संस्थान ने आगे आकर पहल की है। जिस दिन बच्चे की किलकारी गूंजेगी, उसे नवजीवन संस्थान (navjeevan sansthan) में मातृत्व की छांव नसीब होगी और नाबालिग को यशोदा मां की तरह रखा जाएगा।
अपनी मां के माध्यम से एक 17 वर्षीय पीडि़ता की ओर से पेश याचिका को निस्तारित करते हुए न्यायाधीश दिनेश मेहता ने कहा, बलात्कार पीडि़ता के जीवन के अधिकार का संरक्षण जरूरी है, लेकिन जन्म लेने वाले बच्चे के जीवन के अधिकार की भी अनदेखी नहीं की जा सकती।
बलात्कार पीडि़ता को मानसिक और शारीरिक वेदना से बचाने के लिए गर्भपात की अनुमति दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि पैदा होने वाला बच्चा उसे हमेशा खुद के साथ हुए अत्याचार की याद दिलाता रहेगा। कोर्ट ने सवाल किया, क्या ऐसे मामलों में बच्चे और मां के बंधन को खत्म करने का यही एकमात्र तरीका है? जवाब में कोर्ट ने ही कहा – शायद नहीं। ऐसे बंधन को अन्य तरीकों से भी समाप्त किया जा सकता है।

न्यायाधीश मेहता ने कहा, हमारे सामने एक ही दुविधा है – जीवन और मृत्यु का प्रश्न। एक तरफ पीडि़ता के गरिमापूर्ण जीवन का सवाल है, जिसके लिए उसने अपनी मां के माध्यम से गर्भपात की याचना की है। दूसरी तरफ एक गर्भस्थ शिशु है, जिसकी अभी कोई आवाज नहीं है। एक ओर 26 सप्ताह के गर्भ की समाप्ति है, दूसरी ओर एक स्वयंसेवी संस्था उस बच्चे की पालनहार बनने को तत्पर है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि संविधान प्रदत्त जीवन जीने का अधिकार केवल पीडि़ता का ही नहीं, बल्कि गर्भस्थ शिशु का भी है, जब तब कि उसके कारण मां के जीवन को खतरा पैदा न जाए।

हालांकि इस नतीजे पर पहुंचने से पहले कोर्ट में मेडिकल बोर्ड द्वारा की गई पीडि़ता की जांच रिपोर्ट पेश की गई। इसमें बताया गया कि उसके गर्भ में 25 सप्ताह और 3 दिन का भ्रूण है। हालांकि बोर्ड के लिहाज से गर्भपात से उसके जीवन को फौरी तौर पर कोई खतरा नहीं बताया गया।
अतिरिक्त महाधिवक्ता ने भी कहा कि कई मामलों में अदालत के हस्तक्षेप से 31 सप्ताह के गर्भ को भी गिराने की अनुमति दी गई है। सुनवाई के दौरान नवजीवन संस्थान की ओर अधिवक्ता विवेक श्रीमाली ने पहल करते हुए कहा कि गर्भवती की देखभाल और जन्मने के बाद बच्चे की देखरेख संस्थान करने को तैयार है।

एक साल तक किसी को गोद नहीं


इस पर कोर्ट ने निर्देश दिए कि पीडि़ता की गर्भावस्था की गोपनीयता बनाए रखते हुए उसे प्रसव व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने तक नारी निकेतन (जोधपुर) में रखा जाए। उसकी मां भी साथ रह सकेगी। मां की इच्छा पर पीडि़़ता अपने घर भी जा सकती है। नारी निकेतन में रहने की स्थिति में सुरक्षित प्रसव की समस्त जिम्मेदारी राज्य सरकार को वहन करनी होगी। घर या नारी निकेतन में रहने के दौरान संबंधित मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारियों को उसके स्वास्थ्य की देखभाल सुनिश्चित करनी होगी। बच्चे के जन्म के बाद उसकी कस्टडी मां की सहमति व बाल चिकित्सा विशेषज्ञ के फिटनेस प्रमाण पत्र के आधार पर नवजीवन संस्थान को देने के निर्देश दिए गए हैं।
संस्थान को कहा गया है कि जन्म के एक साल तक बच्चे को किसी को गोद नहीं दिया जाए। पीडि़ता बालिग होने के बाद अपनी इच्छा के अनुसार बच्चा वापस ले सकती है। बच्चे के डीएनए सेंपल संबंधित कोर्ट को भिजवाने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि बलात्कार के लंबित प्रकरण में जरूरत समझे जाने पर उसका साक्ष्य लिया जा सके। संस्थान को यह भी कहा गया है कि बच्चे को उसकी मां के बारे में नहीं बताया जाए।
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