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जोधपुर

वो अपने वतन में परायों की तरह मनाएंगे दिवाली

जोधपुर.आज दीपावली ( Deepawali ) का त्योहार है और भारतवासियों में हर तरफ खुशियों का माहौल है, लेकिन खुशियों के इस दिन कुछ परिवार एेसे हैं, जो मायूस हैं, उदास हैं। ये हैं पाकिस्तान विस्थापित ( pakistan migrant ) परिवार। ये परिवार अपने पुरखों के वतन में अपनी ही पहचान- अपनी नागरिकता के लिए तरस रहे हैं। हालत यह है कि 75 प्रतिशत से अधिक पाकिस्तान विस्थापितों को नागरिकता ( nationality ) नहीं मिली है।

जोधपुरOct 27, 2019 / 04:58 am

M I Zahir

They will celebrate Diwali like strangers in their homeland

They will celebrate Diwali like strangers in their homeland

पत्रिका एक्सक्लूसिव

एम आई जाहिर/ जोधपुर. ‘न कोई डेरा है और न कोई बसेरा है, रोशनी के त्योहार पर भी अंधेरा ही अंधेरा है।’ दीपावली ( Diwali ) के त्योहार पर हर तरफ रंगबिरंगी रोशनी का उजाला है। हमारा आपका सबका अपना घर है और हमारे घरों पर रोशनी भी है, यही नहीं, परिवार के पास महंगे कपड़े और पटाखे भी हैं। हम लोग अपनेपन के साथ अपनों के बीच खुशी से लग्जरियस दिवाली ( Diwali Festival ) मनाएंगे, लेकिन कुछ लोग एेसे भी हैं जो इन सब चीजों से दूर हैं। वे आम भारतीयों की तरह दिवाली नहीं मनाएंगे। ये अपने ही पुरखों की धरा पर परायों की तरह यह दिवाली मनाएंगे। यही नहीं, उनकी बस्तियां मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है। जोधपुर में रह रहे पाकिस्तान विस्थापित ( pakistan migrant ) परिवारों का यही हाल है। कुछ परिवारों को भारत की नागरिकता ( nationality ) मिल गई है, उन्हें इससे राहत है, लेकिन कसक यह है कि अब भी करीब 75 प्रतिशत से अधिक विस्थापितों को भारत की नागरिकता नहीं मिली है। उस पर सितम यह कि कई लोग बेरोजगार हैं और दिवाली के लिए महंगी चीजें कैसे खरीदें।
पाकिस्तान विस्थापित फैक्टफाइल
भारत में विस्थापित : एक लाख

राजस्थान में विस्थापित : 30 हजार
जोधपुर में विस्थापित : 15 हजार


नागरिकता की जमीनी हकीकत

भारत सरकार ने सन 2005 में नागरिकता प्रदान करने के अधिकार कुछ महीनों के लिए जिला कलक्टर्स को दिए थे। इससे उनमें अधिकतर राजस्थान व गुजरात राज्यों और कुछ गुजरात में रह रहे पाकिस्तान विस्थापितों को लाभ तो हुआ था, लेकिन तब डेढ़ दो महीने के अंतराल में राजस्थान के केवल १३ विस्थापितों को ही नागरिकता मिली थी। सन 2005 के बाद 10/12 साल बीतने के बावजूद विस्थापितों को नागरिकता देने की गति बहुत धीमी रही। विस्थापितों के लिए संघर्षरत लोगों की मांग पर सरकार ने दिसंबर 2016 में एक बार फिर विस्थापितों को भारतीय नागरिकता देने का अधिकार जिला कलक्टर्स को दिया। इस दौरान केवल 1200 विस्थापितों को ही नागरिकता मिल सकी है। इस आदेश को भी तीन साल होने वाले हैं, लेकिन हजारों पाकिस्तान विस्थापित अब भी नागरिकता मिलने से वंचित हैं।
जोधपुर में पाक विस्थापित : फैक्टफाइल
बनाड़ रोड -2500

झंवर रोड अलकौसर नगर -2200
आंगणवा – 1500

गंगाणा -3000
कालीबेरी -3000

डालीबाई मंदिर रोड – 1000 ( यहां थोड़ी सुविधाएं हैं।)
चोखा- 1000

बोरानाडा- 1000
कुड़ी भगतासनी- 600
(नोट : कुछ विस्थापित और भी जगह हैं। कुछ गायत्रीनगर और पाल लिंक रोड पर भी रहते हैं। )

रोजगार और मूलभूत सुविधाएं भी नहीं

इस बात में कोई दो राय नहीं कि हिंदुस्तान में हम खुद को सुरक्षित समझते हैं और अपना त्योहार आजादी से मना रहे हैं। हमें इस बात का भी बहुत गर्व है और खुशी भी है, लेकिन उसकेसाथ हम अपनी खुशियों को तब तक कुछ फीका समझते हैं, जब तक कि हमारी बस्ती में पानी, शौचालय, बिजली और सडक़ सहित अन्य मूलभूत सुविधाएं नही हैं। हम बस्ती के लोगों के लिए रोजगार भी एक बहुत बड़ी समस्या है। ज्यादातर परिवार महिलाओं और बच्चों सहित जोधपुर के आसपास खेतों में बहुत कठिन परस्थितियों में कृषि मजदूरी करते हैं। यह काम भी सीजनल है। वहीं कुछ लोग स्टोन माइनिंग पर भी काम करते हैं।
-अमराराम ठाकुर
आंगणवा बस्ती,जोधपुर


नागरिकता ही लाएगी असली रोशनी

इस बात में कोई शक नहीं कि दिवाली एक ऐसा त्योहार है जिस पर विस्थापित थोड़े खुशी देख रहे हैं, लेकिन विस्थापित परिवारों के घरों में असल खुशी के दीपों का उजाला तब आएगा, जब उन्हें हिंदुस्तान की नागरिकता मिलेगी। यह बड़े दुख की बात है। अब नागरिकता देने के अधिकार जिला स्तर पर दे दिए गए हैं। लगभग तीन साल बीतने को जा रहे हैं लेकिन उसके बावजूद हजारों विस्थापितों को नागरिकता नहीं मिल पाई है। एेसे में उन सब के लिए यह दीपावली फीकी रहेगी। भारत सरकार ने अगस्त 2016 में विस्थापितों के लिए कानूनी नीति बना दी है। उसकी भी बहुत सी चीजें जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो रही हैं।
-हिन्दूसिंह सोढा
अध्यक्ष, सीमांत लोक संगठन
जोधपुर

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