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जोधपुर में एनिमिया के उपचार का ये नया तरीका हुआ इजाद, मरीजों को मिलेगी राहत

इस तरह का सफल उपचार पश्चिमी राजस्थान के मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग में पहली बार किया गया है।

जोधपुरDec 06, 2017 / 01:18 pm

Abhishek Bissa

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जोधपुर . महात्मा गांधी अस्पताल में रक्त की बीमारी ‘ए प्लास्टिक एनिमिया’ से पीडि़त १६ वर्षीय बालक का बोन मेरो ट्रांसप्लांट करने के बजाय एंटी थाइमोसाइड गु्रफलिन (एटीजी) सिरम देकर इलाज किया गया। इलाज करने वाले चिकित्सकों का कहना है कि इस तरह का सफल उपचार पश्चिमी राजस्थान के मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग में पहली बार किया गया है। उपचार के दौरान मरीज को संक्रमण रहित वार्ड में रखकर चार दिन तक ३२ एटीजी सीरम इंजेक्शन लगाए गए।

महात्मा गांधी अस्पताल अधीक्षक डॉ. पीसी व्यास ने बताया कि मरीज का उपचार डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज मेडिसिन विभाग के आचार्य डॉ. मनोज लाखोटिया के नेतृत्व में मेडिकल कॉलेज के हेमेटोलोजिस्ट डॉ. गोविंद पटेल ने किया। सूरसागर व्यापारियों का मोहल्ला निवासी समीर खान कुरैशी (१६) को शुरुआत में खून की कमी हुई थी और थकान महसूस होने लगी। शरीर के अन्य भागों में रक्तस्त्राव होकर बुखार आने लगा था।
उसने गांधी अस्पताल में जनवरी में संपर्क साधा। जहां एक वरिष्ठ चिकित्सक ने मरीज को ‘ए प्लास्टिक एनिमियाÓ बीमारी होने की बात कही। इसके बाद मरीज अहमदाबाद गया। जहां बोन मेरो ट्रांसप्लांट की सलाह दी गई। मरीज को महात्मा गांधी अस्पताल में जुलाई से हेमोटोलोजिस्ट की सुविधा होने की जानकारी मिली। मरीज लगातार डॉ. पटेल के संपर्क में रहा। इस बीमारी में मरीज २५० मिली ग्राम के ३२ इंजेक्शन लगाए गए। इसमें रोज आठ इंजेक्शन लगाए जाते थे। अब मरीज के आरबीसी, डब्ल्यूबीसी व प्लेटलेट्स नियंत्रण में है।
जान लीजिए क्या है ए प्लास्टिक एनिमिया

डॉ. पटेल ने बताया कि हड्डियों के बीच बोन मेरो होता है। सारा रक्त बोन मेरो के अंदर भरता है। जो कोशिकाएं रक्त बनाती हैं, उसमें स्टेम सेल उत्पन्न होता है। शरीर में रक्त के तीन संगठक आरबीसी, डब्ल्यूबीसी व प्लेटलेट्स होते हैं। शरीर में टी कोशिका व बी कोशिका होती हैं। इसी तरह की टी कोशिका में बहुत सारी गैर जरूरी एंटी इम्यूनिटी विकसित होती है, जो बोन मेरो को खत्म करती है। इससे रक्त की कमी, बुखार, शरीर में ऑक्सीजन सप्लाई नहीं होना व अत्यधिक रक्तस्त्राव हो सकता है। इसे ‘ए प्लास्टिक एनिमियाÓ कहते हैं। बोन मेरो ट्रांसप्लांट का दिल्ली एम्स में १२ लाख रुपए तक का खर्चा आता है। बोन मेरो ट्रांसप्लांट में सगे परिजनों की आवश्यकता रहती है। यहां अस्पताल में बीपीएल मरीज को भामाशाह स्वास्थ्य योजना के जरिए संपूर्ण दो लाख रुपए तक का नि:शुल्क इलाज मुहैया कराया गया।

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