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video : हम घर में कुछ भी हों, बाहर आते ही हिंदुस्तानी हों : डॉ. गुलाब कोठारी

पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने कहा कि हम घर में कुछ भी हों, लेकिन बाहर आते ही हिंदुस्तानी हों।

जोधपुरApr 12, 2018 / 04:05 pm

M I Zahir

Gulab kothari
ओसियां. जोधपुर . पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने ओसियां में आयोजित दिशा बोध कार्यक्रम के अंत में युवाओं के सवालों के जवाब देते हुए कहा कि हम घर में कुछ भी हों, लेकिन बाहर आते ही हिंदुस्तानी हों।
वे गुरुवार सुबह ओसियां स्थित लालचंद मिलापचंद ढड्ढा जैन कॉलेज प्रांगण में दिशा बोध कार्यक्रम में उदबोधन के बाद युवाओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए उनसे संवाद कर रहे थे।

अहंकार मारता है व्यक्ति को
डॉ. कोठारी ने नेहा गुलेच्छा के सवाल के जवाब में कहा कि नई पीढ़ी को अपने आवरण मत ओढ़ाओ। हम घर में कुछ भी हों, लेकिन बाहर आते ही सब हिन्दुस्तानी हों। जो भी संकल्प हो, उसमें आस्था होना जरूरी है। मन कमजोर-शिथिल होता है तो वही तो दुर्गति का कारण बनता है। सात्विक भाव रहेगा तो संकल्प मजबूत रहेगा। सभी के जीवन में संघर्ष आते हैं। अपने आप से कभी झूठ मत बोलो। आप संकल्प कर लो कि खुद से झूठ नहीं बोलूंगा। अहंकार ही व्यक्ति को मारता है।
यह दीया जलता रहे
उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा— क्यूं बन चाहते हैं पत्रकार? एक चिंगारी है जो समाज के लिए करना चाहता है। पत्रकार का लक्ष्य क्या है? खाली समाचार नहीं छापना है। लोकतंत्र में जो आजादी मिली है उनकी रक्षा का संकल्प करना होगा। डॉ. कोठारी ने पत्रकारों से कहा कि आपको तय करना होगा कि कितनी भी आंधी या तूफान आए, यह दीया जलता रहेगा।
बंद हो गया संस्कार रूप खाद—पानी
उन्होंने एक गुठली का उदाहरण देते हुए चंद्रपालसिंह के प्रश्न के उत्तर में कहा कि हमें कोई दिशा देने वाला नहीं है। दिशा इंटरनेट, टीवी, मोबाइल दे रहा है। हमें आज भी अपनी शुरुआत मां-बाप से करनी चाहिए। हम किसके सहारे भविष्य टटोलें? जिसके पास दादा-दादी है, उसे मां बाप से लड़ाई करने की जरूरत नहीं है। दादा-दादी के पास आधा घंटे जरूर बैठें। संस्कारों का काम बंद हो गया है। मां को पता ही नहीं है कि बच्चे को क्या सिखाना है। बच्चा सीधी भाषा में सीखता नहीं है। दादा-दादी यह काम भलीभांति जानते हैं। आज संस्कार रूपी खाद-पानी बंद हो गया है।
जीवन में लक्ष्य जरूरी
डॉ. कोठारी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि ऐसा बागवान चाहिए जो हमें जमीन में गडऩा सिखाए और खाद पानी दे। शिक्षा बुद्धि की हो रही है। बच्चा मां के गर्भ में सीखता है। उन्होंने गुरु और टीचर में विस्तार से अंतर बताते हुए कहा कि जीने का उत्तर व कारण नहीं है। अगर लक्ष्य नहीं है तो जीवन और मृत्यु में कोई अंतर नहीं है।
सत्य एक, असत्य अनंत
उर्मिला ने पूछा कि सच्चाई का रास्ता कठिन क्यों है? इस पर डॉ. कोठारी ने जवाब दिया, सृष्टि में देवता 33 होते हैं। देवताओं का अर्थ अच्छे गुणों वाला। असुर 99 होते हैं। आज शिक्षा का उद्देश्य भी यह रह गया अच्छी नौकरी, पैकेज। हम सरस्वती की आराधना नहीं, लक्ष्मी की आराधना कर रहे हैं। लक्ष्मी यदि आएगी उल्लू पर, उल्लू को उजाले में नहीं दिखेगा। लक्ष्मी के साथ हंसवाहिनी सरस्वती हैं तो कल्याण हो जाएगा। सत्य एक ही होगा। असत्य अनंत हो सकते हैं।
उत्तरदायित्व से विमुख हो रहा समाज
ज्योति प्रधान के सवाल, संस्कार कैसे मिलें? के जवाब में उन्होंने कहा कि हम अपने सम्प्रदाय को संस्कार दे रहे हैं। समाज को चिंता नहीं है। समाज अपने उत्तरदायित्व से विमुख हो रहा है। समाज का स्वरूप बदल रहा है। हम खुद से झूठ बोलने लगे हैं। सामने बुरा काम होने पर कोई टोकने वाला नहीं है। समाज का हर सम्प्रदाय सामूहिक प्रयास करे तो सफलता मिलेगी।
दूसरों को सुख दो
डॉ. कोठारी ने मुकेश के प्रश्न-भारत विश्व गुरु कैसे बन सकता है, के उत्तर में कहा कि जब हर बच्चा हर नागरिक दूसरों की चिंता करने लग जाएगा। सब अपनी चिंता कर रहे हैं। मैं दूसरों को कष्ट देकर भी सुखी होना चाह रहा हूं। दूसरों को सुख दो। सुख लेने वाले को इतिहास ने कभी याद नहीं किया। सिर्फ सुख देने वाले को ही इतिहास में याद किया जाता है। दूसरों को कष्ट देने वाला पशु है और हमें आदमी बनना है।
मन के संकल्प पर फोकस करना चाहिए
एक प्रश्नकर्ता का सवाल था- सफलता के लिए किस पर फोकस करें? उन्होंने जवाब दिया कि मन के संकल्प पर फोकस करना चाहिए। सुबह आंख खुलती है तो आंख बंद कर अपने आप से बात करो। मेरी जिंदगी का संकल्प आगे बढ़ रहा है या नहीं? उसकी तरफ कदम उठ रहे हैं या नहीं? सफलता मिल जाएगी।

जमीन में गडऩा होगा
दिनेश जाणी ने पूछा- आरक्षण का ज्वंलत मुद्दा है। शांत देश में अशांति का रूप ले रहा है? इस प्रश्न के उत्तर में डॉ. कोठारी ने कहा कि जब भी कोई कानून लागू होता है तो उसका पालन करना हमारा धर्म है। मेरी समझ में इतना आया कि जो पेड़ बनना चाहे, उसे जमीन में गडऩा होगा।
क्षमा में है उत्तर
डॉ. कोठारी ने विश्नोई के नशे के बारे में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में कहा कि खाना-जीना नशा है। संगत कैसी है? आप अन्न को शुद्ध कर लीजिए, सारे नशे स्वत: ही समाप्त हो जाएंगे। आप उनके साथ रहें, जिनके सामने आप नशा नहीं करते हैं। मां बाप के सामने गलती रखो। जिस दिन आप गलती के लिए क्षमा मांग लेंगे तो प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा।
शिक्षक दे जीवन की परोक्ष शिक्षा
उन्होंने शिक्षा पद्धति में सुधार से जुड़े पीपी थानवी के सवाल के जवाब में कहा कि हमें शिक्षक की परिभाषा में स्कूल के बाहर भी सोचना होगा। अपने लिए तो सभी करना चाहते हैं, लेकिन दूसरों के लिए करना है। शिक्षक का अर्थ केवल पढ़ाना ही नहीं, बल्कि जीवन की परोक्ष शिक्षा भी देना है।

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