विशेष रूप से गवाह शेराराम के बयानों को दोहराते हुए अधिवक्ता हस्तीमल सारस्वत ने कहा कि शेराराम ने तथाकथित शिकार में शामिल जिप्सी के आगे और पीछे के नम्बर पढऩे व याद रहने का दावा किया था, जबकि जिरह के दौरान गवाह ने हिन्दी तथा अंग्रेजी का ज्ञान नहीं होने तथा खुद को अनपढ़ बताया था।
सारस्वत ने यह भी कहा कि शेराराम ने जिरह के दौरान कहा था कि उसने 2 अक्टूबर 1998 को वन कर्मी मांगीलाल सोनल को बयान दर्ज करवाए, जबकि अभियोजन के अनुसार उसने वन्यजीव अधिकारी ललित बोड़ा को बयान दर्ज करवाए थे। इसी गवाह ने बयान दिया था कि जब वह घटनास्थल पर गया तब उसके साथ ओमाराम भील भी था। अभियोजन ने अज्ञात कारणों से ओमाराम की गवाही नहीं करवा केवल चार लोगों की गवाही करवाई। इन चार गवाहों में मांगीलाल तथा शेराराम सगे भाई हैं। शेराराम ने यह भी बताया था कि उसे शिकार की जानकारी रात को ही हो गई थी, परंतु उसने तब पांच किलोमीटर दूर गुड़ा वन विभाग की सतर्कता चौकी को सूचना नहीं दी। बहस बुधवार को भी जारी रही।
चश्मदीद गवाह पर विश्वास नहीं किया जा सकता बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता हस्तीमल सारस्वत ने सोमवार को कहा था कि गवाह पूनमचंद विश्नोई ने कोर्ट में जिरह के दौरान इस बात से इनकार किया था कि उसने घटनास्थल पर काले हिरणों के शव के पास गोली, छर्रे या खोल देखे थे। उन्होंने कहा कि अभियोजन ने अपनी चार्जशीट में पूनमचंद द्वारा उप वन संरक्षक मांगीलाल सोनल को उनके घर पर रात को 9.15 बजे हरिण का शिकार करने की रिपोर्ट देने का जिक्र किया था। पूनमचंद ने जिरह में बताया था कि उसने दोपहर दो बजे रिपोर्ट दी थी। इस तरह से कई विरोधाभासी बयानों के कारण चश्मदीद गवाह पर विश्वास नहीं किया जा सकता। अविश्वसनीय गवाह के बयानों के आधार पर सलमान सहित किसी को भी सजा देना न्यायोचित नहीं होगा।
सारस्वत ने एक अन्य गवाह शेराराम के बयान और मुख्य परीक्षण में विरोधाभास उजागर किया। शेराराम ने बयान दिया था कि उसने 1-2 अक्टूबर 1998 की मध्य रात्रि में गाडिय़ों और लोगों की आवाजें सुनी थीं, जबकि मुख्य परीक्षण में उसने गोलियों की आवाज सुनने का दावा किया था। उन्होंने कहा कि शेराराम का घर घटनास्थल से दो से तीन किलोमीटर दूर है, इतनी अधिक दूरी से किसी भी तरह की आवाज सुनना संदेहास्पद है।
रिपोर्ट और फर्द में एक ही तरह के कागजात बहस के दौरान सारस्वत ने तर्क दिया कि वन विभाग के पास दर्ज शिकार की रिपोर्ट और उनके द्वारा तैयार की गई विभिन्न फर्दें एक ही तरह के कागज से बनाई गई हैं। इससे साबित होता है कि रिपोर्ट 2 अक्टूबर 1998 को नहीं लिखवाई गई, बाद में तैयार की गई।