सैलानियों के साथ-साथ जोधपुर शहर के बाशिंदे बारिश में भीगे मंडोर गार्डन आ कर सैर सपाटा कर रहे हैं। यहां देसी विदेशी सैलानी और स्कूलों कॉलेजों के भ्रमण दल भी खूब आ रहे हैं। यानी पिकनिक और सैर सपाटे के लिए यह अहम स्थान है। कई फिल्मों व विज्ञापनों की शूटिंग का साक्षी है। ऊंची पहाड़ी से भी इसका दृ़श्य खूबसूरत नजर आता है।
हरियाली अपनी ओर खींच रही है
देश विदेश से आए सैलानियों की नजर में इसका प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बन रहा है और हरियाली लोगों को इसकी ओर खींच रही है। इसके उलट इस बाग की सार संभाल की ओर खास ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हालत यह है कि जगह-जगह कुर्सियां टूटी हुई हैं। उद्यान में जगह-जगह गंदगी नजर आ रही है। इस कारण पर्यटक निराश हो रहे हैं।
बदइंतजामी की वजह से इस बाग मेंं आने वाले लोग इसकी बदहाली देख कर दुखी हो रहे हैं। फलों और फूलों से लदे मण्डोर के बाग में कभी फलदार पौधे लगाए गए थे। यहां जामुन, आम और अमरूद प्रसिद्ध रहे हैं। जब कभी बड़ी संख्या में गुलाब, चमेली और मोगरा आदि फूलों की जरूरत होती थी, तब यहीं से फूल लिए जाते थे। रियासतकाल में मण्डोर का बाग बहुत ही सुन्दर और स्वच्छ था। इतिहास के अनुसार पुराने जमाने में मण्डोर एक विस्तृत नगर व मारवाड़ की राजधानी के नाम से मशहूर था।
इसमें सुधार करवाए थे
महाराजा अजीतसिंह और महाराजा अभयसिंह के शासनकाल (1714 ई. से लेकर 1749 ई.) में जोधपुर नगर का मण्डोर उद्यान व उसके संलग्न देवी-देवताओं की साल और मण्डोर की पुरानी कलात्मक इमारतें अजीत पोल इक थम्बिया महल, पुराना किला व उसके नीचे वाले मेहलात (वर्तमान म्यूजियम भवन) ऐतिहासिक व कलात्मक देवल, थड़े व छत्रियों, नागादरी के संलग्न कुंओं, तालाबों व बावडिय़ों इत्यादि का निर्माण हुआ।
महाराजा उम्मेदसिंह से लेकर महाराजा हनवन्तसिंह के शासनकाल तक मण्डोर गार्डन में कई सुधार कार्य हुए। वहीं 1923 ई. से 1947-48 ई. के दौरान मण्डोर गार्डन को आधुनिक ढंग से तैयार करवाया गया। आजादी के बाद मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिय़ा के समय वित्त मंत्री मथुरादास माथुर के प्रयासों से मण्डोर गार्डन की काया पलट करवाई गई। उद्यान में पानी के हौज, सर्च व फ्लड लाइटें व फव्वारे आदि लगाए गए और मण्डोर में गार्डन के ऊपर ऊंचाई वाले पहाड़ पर हैंगिंग गार्डन भी लगवाया गया। उद्यान के आधुनिक ढंग से विकास के लिए पीडब्ल्यूडी व उद्यान विभाग का भी योगदान सराहनीय रहा। इसकी कायापलट करने में मगराज जैसलमेरिया, सलेराज मुणोहित और दाऊदास शारदा की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही।जातरुओं का पसंदीदा स्पॉटमंडोर बाग में बंदर और लंगूर खूबयह पर्यटन स्थल रामदेवरा मेले के लिए आने वाले जातरुओं का पसंद स्थान है। यहां पुरातत्व विभाग का राजकीय संग्रहालय है। यही नहीं हौज, नागादड़ी और पचकुंडा लोगों के तैरने के प्रमुख स्थान बन गए हैं। आज इसके पिछले हिस्से में नागादड़ी कुंड है।
जोधपुर शहर से दूरी : 8 किलोमीटर
मंडोर उद्यान का निर्माण : 1714 ईस्वीं से लेकर 1749 ईस्वीं
मण्डोर गार्डन सुधरा : 1896 ईस्वीं में
आधुनिक रूप : 1923 ई. से 1947-48 ईस्वीं
देवताओं की साल : 9 देवता, 7 वीर पुरुष
रियासतकाल में यहाँ पर राज्य की तरफ से नियुक्त पदाधिकारी इसकी देखभाल करते थे। जोधपुर राज्य की ओहदा बही के मुताबिक मण्डोर बाग की देखभाल के लिए दरोगा नियुक्त था। कोतवाली के चौतरे से भी इसकी देखभाल होती थी। बही में फौजदार गुलाब खां को इसकी देखरेख की जिम्मेदारी सौंपनेकी जानकारी मिलती है।