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कांकेर

यहां देखने को मिलेगा शिवभक्ति का एक अलग ही रूप, सुखों को छोड़ लोग डूबे है आस्था में

हमारे देश में कई ऐसे रहस्य और आश्चर्य को धार्मिकता की दृष्टि से धर्म के नाम पर आज भी कई ऐसी विधाओं का पालन किया जाता है ।

कांकेरApr 08, 2018 / 03:35 pm

Deepak Sahu

Shiva-bhakti

पखांजूर. हमारे देश में कई ऐसे रहस्य और आश्चर्य को धार्मिकता की दृष्टि से धर्म के नाम पर आज भी कई ऐसी विधाओं का पालन किया जाता है जो अपने आप में अनूठी परंपरा हैं। बंगला कलेंडर के चैत्र माह के 30 तारीख यानी की बंगाली नव वर्ष पहला बैसाख के एक दिन पहले आयोजित होने वाली चरक पूजा बंगाल व कलकत्ता का लोक पर्व में है और इस पर्व को परलकोट अंचल में भी मनाया जाता है यह चैत्र के अंतिम दिन मनाया जाता है।

सुबह उठकर प्रात:काल नहाकर तैयार हो जाते है और भक्त भूखे पेट भिक्षा मांगने निकल जाते है। कुछ शिव भक्त अकेला ही भिक्षा मांगते है तो कुछ ग्रुप में घुमते हुए भिक्षा मांगते हैं। भिक्षा से प्राप्त चावल अनाज से एक साथ इकठ्ठा पकाते हैं। यह लोग रात में एक पहर भोजन ले रहे हैं। शिव भक्त चैत्र माह में भौतिक सुख सुविधा को त्यागकर पूरे एक माह साधू सन्यासी जीवन व्यतीत करते हैं। गेरुवा वस्त्र धारण कर सुबह से शिवभक्त नीलपाठ को अपने सिर पर लेकर नृत्य करते हुए गांव, बाजार, मोहल्ले के हर घर घर दस्तक देते हैं। यह माना जाता कि नीलपाठ घर के आंगन में प्रवेश से सारे दुखकष्ट दुविधा का निवारण हो जाता है।

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