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कांकेर

लोकसभा चुनाव के लिए बढ़ी प्रत्याशियों की सुरक्षा, अब नक्सल प्रभावित गांवों में अकेले प्रचार पर लगी रोक

दंतेवाड़ा की घटना के बाद अंदर के गांवों में प्रचार के लिए नहीं जा रहे प्रत्याशी, समर्थकों को अलग-अलग सौंपी जा रही जिम्मेदारी, लालआतंक से दहशत

कांकेरApr 12, 2019 / 02:58 pm

Akanksha Agrawal

Lok Sabha CG 2019

लोकसभा चुनाव के लिए बढ़ी प्रत्याशियों की सुरक्षा, अब नक्सल प्रभावित गांवों में अकेले प्रचार पर लगी रोक

कांकेर. लोकसभा चुनाव में पुलिस प्रशासन ने प्रत्याशियों की सुरक्षा व्यवस्था तगड़ी कर दी है। प्रत्याशियों को अंदर के गांवों में अकेले प्रचार करने पर रोक लगा दी है। प्रभावित क्षेत्र के गांवों में प्रचार-प्रसार करने के बजाए प्रत्याशी अब हाट बाजारों का चयन कर रहे हैं। माओवादी प्रभावित गांवों में समर्थकों को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है।
माओवादी घटना के बाद से प्रत्याशियों में भी लाल आतंक का खौफ बढ़ गया है। अंतागढ़, दुर्गूकोंदल और कोयलीबेड़ा क्षेत्र में प्रत्याशी अंदर के गांवों में प्रचार के लिए नहीं जा रहे हैं। पुलिस प्रशासन भी प्रत्याशियों की सुरक्षा व्यवस्था तगड़ी कर दी है। पत्रिका ने प्रभावित क्षेत्र में चुनावी प्रचार का जायजा लिया तो कांग्रेस और भाजपा के कार्यकर्ता ही चुनावी कैम्पेन चलाते हुए नजर आए। कोयलीबेड़ा ब्लॉक के पानीडोबीर गांव तक न तो भाजपा न ही कांग्रेस प्रत्याशी पहुंचेे हैं।
इस गांव के ग्रामीणों ने बताया कि चुनाव के समय तो कभी-कभी भोपू सुनाई देता है, लेकिन प्रत्याशी गांवों में नहीं पहुंच रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि वैसे हमारे गांव का बूथ को बदल दिया गया है। गट्टाकाल के मतदाताओं ने कहा कि हर बार तो मतदान दूसरे गांव के बूथ पर करते हैं। इस बार उम्मीद जगी थी कि अपने गांव में मतदान होगा। प्रशासन ने इस बार भी दूसरे गांव में बूथ को शिफ्ट कर दिया है।
सुकालू राम ने कहा कि हमारे गांव के बूथ को इसलिए बदल दिया जाता कि माओवादी प्रभावित है। जबकि जिले कई ऐसे बूथों पर मतदान दल हेलीकाफ्टर से पहुंचता है तो हमारे गांव में क्यों नहीं। अगर हमारे गांव में यह व्यवस्था हो जाती तो मतदान के लिए दूर नहीं जाना होता। मतिराम ने बताया कि चुनाव के समय में ही हम मतदाता कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों को याद आते हैं। चुनाव के बाद तो इधर देखने नहीं आते हैं।

चुनावी डुगडुगी में सिर्फ हाट-बाजार में शोर
दंतेवाड़ा की घटना के बाद से अंचल के गांवों में चुनावी डुगडुगी का शोर सिर्फ हाट बाजारों हर चल रहा है। गौरतलब है कि दंतेवाड़ा में चुनाव प्रचार से लौट रहे विधायक भीमा मंडावी के काफिले पर नक्सलियों ने हमला किया था, जिसमें विधायक भीमा मंडावी की मौत हो गई। अंदर के गांवों में कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशी जाने से कतरा रहे हैं। साप्ताहिक बाजार में ही चुनावी जनसभा हो रही है। वैसे नेताओं को बाजार में भीड़ आसानी से मिल जाती है।

एक हाट बाजार में तीन से चार गांव के लोग आते हैं। हाट बाजार में भीड़ होने के कारण माओवादी घटना का भय नहीं रहता है, जो प्रत्याशियों के आसान और सुरक्षित प्रचार का स्थान है। सभी प्रत्याशियों के लिए सुरक्षा का घेरा होने पर अंदर के गांवों में और खतरा बढ़ गया है। बिना सुरक्षा अंदर के गांवों में प्रत्याशी के जाने पर रोक के कारण गांव के वोटरों से मुलाकात बाजार में हो गई है।

भाजपा और कांग्रेस में होगा मुकाबला
17वीं लोकसभा चुनाव में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा। कांग्रेस दो दशक के वनवास को खत्म करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। हर गांव में बूथ के कार्यकर्ताओं तक पकड़ मजबूत कर ली है। भाजपा की प्रतिष्ठा भी दाव पर लगी है। 20 साल से कांकेर लोकसभा सीट पर लगातार जीत के क्रम को आगे बढ़ाने के लिए एड़ी चोटी की ताकत झोंक दी है। कांकेर लोकसभा सीट पर भाजपा के टिकट पर चार बार सोहन पोटाई और एक बार विक्रम उसेंडी जीत दर्ज कर चुके हैं। सोहन पोटाई का टिकट काटकर भाजपा ने विक्रम उसेंडी को मैदान में उतारा था। इस बार विक्रम उसेंडी का टिकट काटकर मोहन मंडावी को चुनावी समर में उतारा है।

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