अखिलेश ने खेला बड़ा दांव माना जा रहा है कि सपा-बसपा गठबंधन और सीट बंटवारे के गणित का लाभ उठाने के लिए अखिलेश ने अपनी पत्नी डिम्पल यादव को पुनः राजनीति के अखाड़े में उतार कर यह यह दांव खेला है। ज्यादा हैरानी इसलिए हो रही कि जून 2018 में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का एलान कर चुके थे। इससे पहले विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद उन्होंने सार्वजनिक मंच से कहा था कि डिंपल यादव अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी। शुक्रवार को समाजवादी पार्टी के ट्विटर अकाउंट से उनके नाम का एलान होने के तुरंत बाद अखिलेश यादव ने भी ट्वीट कर लिखा कि समाजवादी पार्टी ने सभी के लिए समानता की प्रतिबद्धता दोहराई है।
यहां से चुनाव लड़ेंगे अखिलेश कन्नौज लोकसभा सीट से डिंपल यादव का नाम घोषित होने के बाद एक बार फिर यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव आजमगढ़ से चुनाव लड़ सकते हैं। राजनीतिक जानकार भी इसकी पुष्टि करते हैं। माना जा रहा है कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का एलान होने के बाद आजमगढ़ की सीट खाली हो गई है। ऐसे में अखिलेश वहां से मैदान में उतर सकते हैं।
एक सीट से साधेंगे कई सीट सियासी समीकरण को देखें तो यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि अखिलेश एक सीट से कई सीटों पर निशाना साधने की फ़िराक में हैं। जैसा कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का एलान होने के बाद आजमगढ़ की सीट खाली हो गई है। ऐसे में अब अखिलेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती पूर्वांचल को लेकर है शायद इसी बजह से अखिलेश ने कन्नौज लोकसभा से डिम्पल यादव को प्रत्याशी बनाकर अपने लिए पूर्वांचल की स्थिति को मजबूत करने के लिए अभी रिजर्व रख छोड़ा है और आजमगढ़ से अपने खुद मैदान में उतार कर पूर्वांचल की कई सीट पर निशाना साध सकते हैं।
मिलेगा कड़ा मुकाबला हालांकि पिछले चुनाव को देखते हुए डिम्पल यादव के लिए गठबंधन कितनी राह आसान करेगा यह एक सवाल बना रहेगा क्योंकी 2014 लोकसभा चुनाव में कानपुर-बुंदेलखंड की 10 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 9 पर जीत दर्ज की थी। सिर्फ कन्नौज सीट सपा के खाते में आई थी। यहां से डिंपल यादव ने मात्र 19 हजार 907 वोट से भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक को हराया था।
निर्विरोध निर्वाचित वर्ष 2012 में कन्नौज लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सांसद डिंपल यादव ने निर्विरोध जीत दर्ज कर इतिहास रचा था। डिंपल से पहले सिर्फ पुरुषोत्तम दास टंडन 1952 में निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं।