1700 वर्ष पुराना है मंदिर
मंदिर के पुजारी दीपक बताते हैं कि पिता से हुई अनबन पर उनके कोप से बचने के लिए घर से एक साथ बारह बहनें भाग गई। सारी बहनें किदवई नगर में मूर्ति बनकर स्थापित हो गई। पत्थर बनी यही बारह बहनें कई सालों बाद बारा देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुई। पुजारी बताते हैं कि ं देवी के नाम से दक्षिण के ज्यादातर इलाकों के नाम रखे गए हैं। इन इलाकों में बर्रा एक से लेकर बर्रा नौ तक, बिन्गवा, बारासिरोही और बर्रा विश्व बैंक का नाम भी देवी के नाम पर ही रखा गया है। पुजारी के मुताबिक एएसआई की टीम ने जब इसका सर्वेक्षण किया था और यह पाया था कि मंदिर की मूर्ति लगभग 15 से 17 सौ साल पुरानी है।
संतान सुख की प्राप्ति
नवरात्रि में सुबह से लेकर देरशाम तक लाखों की संख्या भक्त आते हैं मां बारा देवी के दर्शन कर पुण्य कमाते हैं। मंदिर के पुजारी दीपक कुमार बताते हैं कि मंदिर लगभग 1700 वर्ष पुराना है। मंदिर में जिन दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ती नहीं होती। वह मां के दर पर आते हैं और चुनरी बांध कर मन्नत मांगते हैं। मातारानी की कृपा से उनके आंगन में किलकारियों की गूंज सुनाई देती है। अगले नवरात्रि पर बच्चे का पहला मंडन मंदिर परिसर पर ही होता है। मुंडन के बाद दंपत्ति चुनरी खोल लेते हैं।
चुनरी का खास रहस्य
बारा देवी मंदिर में आने वाला हर भक्त अपनी मनोकामना मांग कर चुनरी बांधता है। मन्नत पूरी होने पर वह चुनरी को खोल देता है। मातारानी के दर्शन व मन्नत के तौर पर चुनरी बांधने के लिए देश के अलावा नवरात्रि में विदेश से भी भक्त आते हैं। सुबह आरती के बाद मंदिर के पट खोल दिए जाते हैं। पुजारी की मानें तो नवरात्रि पर हरदिन करीब एक लाख से ज्यादा भक्त मां दर पर माथा टेकते हैं और चुनरी बांधते हैं। भक्त कमल मिश्रा बताते हैं कि वह पिछले बीस सालों से मातारानी के दर पर आते हैं और उनकी कृपा से जीवन में कभी संकट नहीं आया।
अष्टमी के दिन निकलते हैं जवारे
नवरात्र की अष्टमी तिथि पर श्रद्धालु मां बारा देवी को जवारा निकालते हैं। मंदिर के आसपास आस्था का सैलाब उमड़ता है। इस दौरान मां काली और भगवान शिव के तांडव नृत्य को देख लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बरादेवी को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु खतरनाक करतब भी कर दिखाते हैं। कोई आग से खेलता है तो कोई अपने गाल के आरपार नुकीली धातु पार कर दिखाता है। नाचते गाते श्रद्धालुओं का जगह-जगह स्वागत कर फूल बरसाए जाते हैं। यहां बड़ों के साथ बच्चों और महिलाओं ने भी सांग लगाती हैं।