अधूरी शिक्षा को पूरा करने आए इन लोगों को किसी नौकरी के लिए पीजी की डिग्री नहीं चाहिए। इसमें कई अभ्यर्थी ऐसे हैं, जो वर्तमान में अच्छा व्यापार कर रहे हैं, वहीं कई महिलाएं हैं जो पिछले कई वर्षों से अपनी गृहस्थी में व्यस्त हैं। इन्हें तो बस मन की खुशी के लिए अपनी डिग्री चाहिए। एमए में प्रवेश लेने वाले राकेश कुमार ने बताया कि वर्ष 1997 में बीए पास किया था। फिर घर की मजबूरी के चलते पढ़ाई नहीं कर सका और व्यापार करने लगा। मगर पोस्टग्रेजुएट बनने की इच्छा हमेशा रही। इस वर्ष एमए में प्रवेश लिया है। वर्ष 2000 में बीए पास करने वाले अमन तिवारी ने विवि के इस फैसले की तारीफ की।
सीएसजेएमयू व इससे संबद्ध महाविद्यालयों में प्रवेश के लिए डब्ल्यूआरएन (वेब रजिस्ट्रेशन नंबर) जरूरी है। विवि की ऑनलाइन वेबसाइट पर वर्ष 2014 तक इंटर या स्नातक की परीक्षा पास करने वाले अभ्यर्थी सीधे डब्ल्यूआरएन जनरेट कर सकते हैं। लेकिन, इससे पहले पास करने वाले छात्रों को डब्ल्यूआरएन जनरेट करने के लिए विशेष अनुमति लेनी होती है। इस वर्ष विवि प्रशासन परास्नातक में प्रवेश के लिए उम्र की सीमा खत्म कर दी है। इससे परास्नातक (पीजी) होने का सपना संजोए उम्रदराज लोगों ने भी प्रवेश लिया है।
विवि के रिकार्ड के मुताबिक इस वर्ष करीब 400 से अधिक अभ्यर्थियों ने एमए, एमएससी, डीफार्मा, एमबीए समेत विभिन्न प्रोफेशनल कोर्स में प्रवेश लिया है, जिन्होंने इंटर या स्नातक की पढ़ाई वर्ष 1995 से लेकर 2005 के बीच किया है। कहा, अब विवि प्रशासन ने साबित किया है कि पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती है। इसलिए एमए में प्रवेश लिया है। इसी तरह, कई छात्रों ने इंटर पास करने के बीस साल बाद डीफार्मा में प्रवेश लिया है। उनका कहना है कि पढ़ाई के साथ रोजगार का अच्छा अवसर है।