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कानपुर

मजदूरों के खातों में जमा कराए 5 से दस करोड़ रुपए

नोटबंदी के दौरान हुआ था खेल, अब आयकर विभाग की जांच शुरू कानपुर रीजन के 174 खातों के पिछले तीन साल के लेन-देन पर नजर

कानपुरJul 23, 2019 / 01:57 pm

आलोक पाण्डेय

demonetisation

मजदूरों के खातों में जमा कराए 5 से दस करोड़ रुपए

कानपुर। नोटबंदी के बाद यह चर्चा थी कालाधन दबाए बैठे लोगों ने अपने नीचे काम करने वाले गरीब लोगों के खातों का उपयोग अपने कालेधन को सफेद करने में किया है, मगर महोबा के चरखारी में एक युवक के खाते में अचानक एक करोड़ रुपये आने की खबर के बाद यह बात साबित हो रही है। कानपुर में ऐसे मामलों की भरमार है। नोटबंदी के दौरान 40 से ज्यादा खातों में पांच से 10 करोड़ रुपये जमा किए गए और बाद में धीरे-धीरे निकाल लिए गए।
आयकर विभाग हुआ सतर्क
कुछ ही दिनों मेंबड़ी रकम की जमा-निकासी की स्थिति सामने आई तो आयकर अफसरों ने खातों में दर्ज पते पर जाकर पड़ताल की। इनमें से सभी खाताधारक बिहार और झारखंड के मजदूर निकले। ये कानपुर रोजी-रोटी की तलाश में आए थे। आयकर विभाग का कानपुर स्थित जांच निदेशालय नोटबंदी के बाद खातों में अप्रत्याशित जमा और निकासी के मामलों की गहनता से पड़ताल कर रहा है।

कानपुर से १० करोड़ का हुआ खेल
शहर में पांच से 10 करोड़ रुपये तक की जमा निकासी के 40 मामले सामने आए हैं, जबकि समूचे यूपी और उत्तराखंड में ऐसे मामलों की संख्या 174 है। ये सभी मामले फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट ने बैंकों से मिले ऑनलाइन डाटा की छंटनी के बाद चिह्नित किए हैं। जांच निदेशालय बीते एक साल से इन प्रकरणों की गहन पड़ताल कर रहा है। सभी खाताधारकों से पूछताछ की गई और उनकी वित्तीय स्थिति का आकलन किया गया। इनमें से ज्यादातर को यह भी नहीं पता था कि उनका बैंक खाता भी है।
मजदूरों को बनाया गया मोहरा
नोटबंदी के दौरान मजदूरों को मोहरा बनाकर काली कमाई को सफेद किया गया है। आयकर अफसर अब हर खाते की जांच में बैंकों को भी शामिल करेंगे। खाता खोले जाने के समय लिए गए दस्तावेज जब्त किए जा रहे हैं। बैंकों से पूछा जा रहा है कि इतनी बड़ी रकम निकालने के लिए कौन आता था। इसके अलावा मजदूरों से भी यह जानकारी जुटाई जा रही है कि नोटबंदी के दौरान या उससे पहले किस प्रतिष्ठान में काम करते थे।
लेनदेना का नहीं मिल रहा सीधा सुराग
प्रधान निदेशक अमरेंद्र कुमार का कहना है कि यह जांच बड़ी जटिल है। लेनदेन का कोई सीधा सुराग नहीं मिलने से अब कड़ी से कड़ी जोड़ी जा रही है। मजदूरों और बैंकों से मिल रही एक-एक सूचना के जरिये उन लोगों तक पहुंचने का प्रयास किया जा रहा है जिन्होंने नोटबंदी के दौरान अरबों रुपये का काला धन सफेद किया।
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