सरकार गिरने के बाद नहीं थे निराश
प्रमिला पांडेय अपने नेता व गुरू की मौत पर दुखी जाहिर करते हुए बताया कि वो कलमकार, कवि, नेता और एक अच्छे इंसान थे। 13 दिन की सरकार गिर जाने के बाद अटल जी एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए कानपुर के पडित दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज आजादनगर आए थे। यहां पर इंडरमीडिएट के छात्र हेमन्त मोहन ने स्कूल में 88 फीसदी अंक लाकर प्रथम स्थान पाया था। अटल जी छात्र हेमन्त को पुरूस्कार देकर कहा था कि बच्चे जीवन में हार नहीं माना। मैं 17 दिन पहले प्रधानमंत्री था और 13 दिन तक देश की बागडोर संभाली। फिर भी चेहरे में निराशा नहीं। मेहनत करना और जो भी लक्ष्य बनाना उसे पूरा कर के ही दम लेना। इस दौरान कई रूकावटें आएंगी, पर उनसे लड़-झगड़ कर खुद रास्ता बनाना।
चौबे जी की खाई पानीपुरी
अटल जी पंडित दीनदयाल से मेयर प्रमिला पांडेय के निवास गए। यहां पर उनके लिए जमाम तरह के पकवान रखे। जिन्हें देखकर अटल जी ने कहा कि प्रमिला बिटिया हम हैं, हमें ये व्यंजन नहीं चौबे जी की पानीपुरी खानी हैं। प्रमिला बताती हैं कि जैसे ही अटल जी ने पानपूरी मांगा हमने अपने देवर को पैसे देकर चौबे जी की दुकान के ठेले पर भेज दिया। देवर चौबे की दुकान से सौ रूपए की पानपूरी खरीद कर लाए। हमने उन्हें बैठने को कहा तो अटल जी तत्काल बोले, कानपुर की पानपूरी बैठ कर खाने से ज्यादा स्वादिष्ट खड़े होकर लगती है। यह कह खुद अपने हाथ से पानपूरी भरपेट खाई। प्रमिला पांडेय ने बताया कि अटल जी का कानपुर से गहरा नाता था और यहां के लोग, हवाएं, दरिया, मिलें उनके दिन में बसती थीं।
फिर बनें प्रधानमंत्री
प्रमिला पांडेय ने बताया कि 1999 में जब दोबारा लोकसभा चुनाव का शंखदान किया तो अटल जी ने कानपुर में पहली रैली करने का ऐलान कर दिया। अटल जी की रैली के लिए सैकड़ों कार्यकर्ता सुबह से लेकर रात जुटे रहे। जिस दिन फूलबाग से अटल जी दहाड़े तो सभा में आए लोग उनके एक-एक शब्द को ध्यान से सुना। मतदान के बाद अटल जी के हाथ में सत्ता आई और उन्होंने गठबंधन की सरकारों के नए युग की शुरूआत की। अटल जी बतौर प्रधानमंत्री रहते हुए 2001 में कानपुर आए। उन्होंने सर्किटहाउस में हमें बुलाया। हमं पता था कि उनके लिए हमें क्या ले जाना है। बस फिर क्या था हमने अपनी मोपेड का हैंडिल चौबे जी की ठेले की तरफ मोड़ दिया और वहां से पानपूरी लेकर सर्किटहाउस पहुंचे।
–तो अटल जी कोठरी हैं
मेयर प्रमिला पांडेय कहती हैं, भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी का कोई सानी नहीं है। उनके जैसा न तो कोई हुआ था और न ही कोई होगा। राजनीति अगर काजल की कोठरी है तो वाजपेयी उसमें जीवन भर बिताने के बावजूद स्वच्छ व धवल बने रहने वाले बिरले नेता थे। प्रमिला पांडेय कहती हैं कि अटल जी जब 1999 में कानपुर आए थे तब बीजपी नेताओं के साथ बैठक की थी और कहा था कि आज की राजनीति विवेक नहीं, वाक् चातुर्य चाहती है, संयम नहीं असहिष्णुता को प्रोत्साहन देती है। श्रेय नहीं प्रेय के पीछे पागल है। मतभेद का समादर करना तो दूर रहा, उसे सहन करने की प्रवृत्ति भी विलुप्त होती जा रही है। उन्होंने कहे एक-एक शब्द हमें आज भी याद हैं। अटल जी ने कहा था कि पद के पीछे भागने के बजाए पद को अपने पास आने के लिए प्रयास करें।