रईसों को जिंदगी कुर्बान करने के लिए खर्च करने होंगे 172 रुपए
कानपुर•Jun 14, 2018 / 01:59 pm•
Vinod Nigam
मौत की कीमत, गरीबों के लिए सिर्फ 20 रुपए
कानपुर । जिंदगी की कोई कीमत नहीं होती है। यह फिल्मी डॉयलॉग कई मर्तबा सुना होगा। अक्सर ही मुआवजे की लड़ाई में भी ऐसे डॉयलाग उछलते हैं। वाकई जिंदगी की कीमत तय नहीं होती, लेकिन मौत की कीमत तय है। गरीबों के लिए मौत की कीमत 20-25 रुपए तय है, जबकि रईसजादों के लिए डेढ़ सौ से दो सौ रुपए तय। कुछ मामलों में मुफ्त की मौत भी मिलती है। नए किस्म का यह विश्लेषण रोचक है। मौत की कीमत कैसे तय हुई और क्या कहते हैं आकड़े, यह जानने के लिए पूरी रिपोर्ट पढऩा जरूरी है।
सिर्फ रस्सी के कारण सस्ती है गरीबों की मौत
देश में पिछले 15 दिन में आत्महत्या की बड़ी खबरों पर नजर डालिए। बीते मंगलवार को आध्यात्मिक गुरु भय्यूजी महाराज ने इंदौर में अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर से गोली मारकर जिंदगी का अंत कर लिया। कुछ दिन पहले मुम्बई के तेज-तर्राक पुलिस अफसर हिमांशु रॉय ने अपने आफिस में सर्विस रिवाल्वर से दुनिया को अलविदा कह दिया। इसी प्रकार यूपी के तेज-तर्रार अफसर राजेश साहनी ने डीजीपी आफिस में खुद को गोली से उड़ा लिया। अब अखबारों में सिंगल-डबल कॉलम में छपी गरीबों की मौत की खबर पर गौर कीजिए। ज्यादातर ने फांसी के फंदे पर झूलकर अपनी जिंदगी का अंत किया है। मौत की कीमत तय करने का विश्लेषण इसी तथ्य पर आधारित है। एक पखवारे में तीन बड़े लोगों की आत्महत्या की खबर सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो एक चर्चा और निकल पड़ी। एक टिप्पणी पर बहस शुरू हो गई है। टिप्पणी में कहा गया है कि गरीब भी आत्महत्या करता है, लेकिन सस्ती मौत के सहारे। गरीब व्यक्ति बंदूक की बुलेट के बजाए सस्ती रस्सी के फंदे का इस्तेमाल करता है।
मौत की कीमत के पीछे मनोविज्ञान भी छिपा है
मौत के तरीकों पर मनोचिकित्सक रोहित अवस्थी कहते हैं कि जब भी अमीर व्यक्ति सुसाइड करता है तो वह मौत के दौरान कितना दर्द होगा ? इस सवाल का जवाब विभिन्न माध्यमों से तलाशता है, जबकि गरीब के पास जानकारी के लिए माध्यम नहीं होते हैं। मौत के दौरान कम झटपटाहट हो, इसी कारण रईस लोग बुलेट के जरिए मौत को न्योता देते हैं, जबकि गरीब व्यक्ति फांसी के फंदे पर लटकने के बाद तड़-तड़प पर जिंदगी को अलविदा कहता है।
अवसाद बनती है इंसान की जिंदगी की मौत की वजह
बहरहाल, एक पखवारे में मौत का आलिंगन करने वाली तीनों प्रमुख हस्तियों के जीवन को देखें तो शायद ही कोई कमी नजर आए। एक इंसान को जिस पद, प्रतिष्ठा और पैसे की चाह होती है, वो भय्यूजी महाराज से लेकर साहनी तक तीनों के पास था। फिर भी तीनों की मौत का कारण पहली नजर में अवसाद यानी तनाव है। वो तनाव जिसने इन तीनों को भरी दुनिया में अकेला कर दिया। इसीलिए जरूरी है कि आप भी जीवन ने तनाव न लें और खुद को अकेलेपन का शिकार होने से भी बचाएं। मनोचिकित्सक डॉक्टर रोहित अवस्थी ने बताया कि सुसाइड के कई ऐसे मामले आए, जिनमें मौत की वजह तनाव निकल कर आया। कानपुर के सजेती थाने में मां और बेटे ने फांसी लगाकर जान दे दी। दोनों तरीबी के चलते तनाव में थे। मां ने रस्सी तो बेटे ने मां की धोती से गले में फंदा लगा जान दे दी। डॉक्टर अवस्थी बताते हैं कि जब भी अमीर व्यक्ति ऐसा कदम उठाने की सोंचता है तो सुसाइड के दौरान कम दर्द वाला तरीके की गहराई से पडताल करता है और फिर किस हथियार से कम दर्द वाली मौत मिले उसे अख्तियार करता है। तबकि गरीब के बाद उस वक्त पढऩे और दर्द भरी मौत की बिलकुल जानकारी नहीं होती इसलिए अधिकतर गरीब फांसी लगाकर ही जान देते हैं।
सैफुउल्ला से लेकर बाबर खालसा तक
मलाईदार पोस्टिंग और कुर्सी की कशमकश से दूर रहे एटीएस के एएसपी राजेश साहनी अब नहीं रहे। पुलिस महकमे में साहनी ऐसे चंद अफसरों में शुमार थे, जो किसी तरह के विवाद और चर्चाओं से दूर थे। तमाम व्यस्तताओं के बीच उनका चेहरा हमेशा मुस्कराता रहता था। महकमे के साथी हों या फिर मीडियाकर्मी सब उनके कायल थे। साहनी ने 29 मई को गोली मार कर सुसाइड कर लिया। पर मरने से पहले उन्होंने देश के लिए जीतोड़ मेहनत की। एटीएस में आने से पूर्व राजेश साहनी वर्ष 2013 में एनआईए में भी काम कर चुके थे। एटीएस में आने के बाद आतंकी सैफुल्ल से मुठभेड़ के अलावा वर्ष 2017 में अंसारूल बंगला टीम के संदिग्ध आतंकियों को पकडऩे, बब्बर खालसा के आतंकी जसवंत सिंह व आइएसआइ एजेंट आफताब अली को पकडऩे में उनकी अहम भूमिका थी।राजेश साहनी मूलरूप् से बिहार के पटना जिले के रहने वाले थे और वर्तमान में एटीएस लखनऊ में तैनात थे।
नहीं रहा मुम्बई का सिंघम
मुंबई के पुलिस विभाग में संयुक्त आयुक्त (अपराध शाखा) एवं आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) जैसी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा चुके हिमांशु रॉय ने 29 मई को अपने घर में गोली मारकर सुसाइड कर लिया। 23 जून, 1963 को मुंबई में ही जन्मे एवं पले-बढ़े रॉय की गिनती हाल के दिनों के तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों में होती थी। उनके नेतृत्व में कई महत्त्वपूर्ण मामलों का खुलासा हुआ। मुंबई पुलिस में साइबर क्राइम विभाग की स्थापना भी उन्होंने ही तत्कालीन पुलिस आयुक्त डी.शिवनंदन के सुझाव पर की थी। इसके अलावा हिमांशु कई महत्वपूर्ण मामलों से भी जुड़े रहे थे। 2013 के आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले की जांच का श्रेय हिमांशु रॉय को ही जाता है। रॉय 2008 में मुंबई पर हुए आतंकी हमले की जांच टीम का भी हिस्सा रहे। 11 जुलाई, 2006 को पश्चिम रेलवे की उपनगरीय ट्रेन में हुए सिलसिलेवार धमाकों की जांच में रॉय शामिल रहे थे।