बूथ लेवल मैनेजमेंट ने दिखाया असर
इस विधानसभा उपचुनाव में भाजपा संगठन ने पूरी ताकत झोंक दी थी। एक ओर जहां प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित दोनों उप मुख्यमंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों ने सिकंदरा में चुनाव प्रचार में हिस्सा लिया तो दूसरी ओर चुनाव प्रबंधन सँभालने के लिए चार विधायकों की ख़ास तौर से ड्यूटी लगाई गई थी। बूथ लेवल तक भगवा टोली को सक्रिय कर वोटरों को लामबंद करने का काम चला क्योंकि इस सीट को पार्टी और सरकार दोनों की प्रतिष्ठा का प्रश्न माना जा रहा था।
सहानुभूति की लहर का मिला लाभ
एक ओर जहां भगवा टोली बूथ लेवल तक चुनाव के प्रबंधन में जुटी थी तो दूसरी ओर सिकंदरा के लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी अजीत पाल को सहानुभूति वोटों की भी सौगात दी। इस सीट पर अजीत पाल के पिता मथुरा पाल विधायक थे और उनके देहांत के बाद यह सीट खाली हुई थी। भाजपा ने इस सीट पर सहानुभूति वोटों को ध्यान में रखते हुए उनके बेटे अजीत पाल को टिकट देकर मैदान में उतारा। मुख्यमंत्री और भाजपा नेताओं ने चुनावी सभाओं में लोगों से अपील करते हुए कई बार कहा कि मथुरा पाल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके बेटे को वोट देकर चुनाव जिता दिया जाए। लोगों पर इस भावनात्मक अपील का अभी असर हुआ और अजीत चुनाव जंग में सिकंदर बने।
सपा का भितरघात बना भाजपा के लिए फायदेमंद
इस सीट पर समाजवादी पार्टी के नेताओं का भितरघात भी भाजपा के लिए फायदेमंद बना। सपा पहले पवन कटियार को प्रत्याशी बनाने जा रही थी लेकिन बाद में सीमा सचान को प्रत्याशी बनाया गया। ऊपरी तौर पर भले ही दोनों नेताओं के बीच समझौता हो गया लेकिन संगठन में नेताओं का भितरघात जारी रहा। इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी ने भले ही अधिक वोट हासिल न किये हों लेकिन भाजपा की जीत में विपक्षी वोटों का बँटवारा भी हार का कारण बना।
ब्रेक पर बवाल
काउंटिंग के दौरान दसवें राउंड के बाद स्थिति ऐसी आई जब सपा और भाजपा प्रत्याशियों के बीच अंतर 2000 से भी कम वोटों का रह गया। लंच के बाद काउंटिंग शुरू होने में हुई देरी से सपा और कांग्रेस नेताओं ने काउंटिंग प्रक्रिया में धांधली का आरोप लगाते हुए मतगणना का बहिष्कार कर दिया। इस बीच काफी देर तक बवाल भी हुआ और कांग्रेस व सपा कैंडिडेट मतगणना केंद्र से बाहर चले गए।
फूलपुर और गोरखपुर में अगली परीक्षा
सिकंदरा विधान सभा सीट पर उपचुनाव के नतीजे भले ही पार्टी के लिए उत्साहजनक हों लेकिन नए साल में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव पार्टी और सरकार के लिए बड़ी परीक्षा साबित होंगे। गोरखपुर सीट को भारतीय जनता पार्टी भले ही सुरक्षित मानकर चल रही हो लेकिन फूलपुर सीट संवेदनशील माना जा रहा है। इस क्षेत्र में निकाय चुनाव में पार्टी के प्रत्याशियों की हार के बाद से ही लगातार चुनौती बरक़रार है। हालाँकि ताजा चुनाव नतीजे पार्टी के लिए उत्साह बढ़ाने वाले हैं और इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने में मदद मिलेगी।