दो चीजों से परहेज और तीन से लगाव जरूरी है गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कालेज की प्रिंसिपल डॉ. आरती दबे लालचंदानी की सलाह है कि मेडिकल कालेज में एडमिशन के लिए नीट की तैयारी करते समय समर्पण और जुनून जरूरी है। यह जुनून ऐसा होना चाहिए कि दिन-रात खुली आंखों से एक ही सपना देखा जाए कि डाक्टर बनना है। इस सपने के लिए रिश्तेदारी, दोस्ती और पारिवारिक कार्यक्रमों से दूरी बनाना होगा। इसके साथ ही मोबाइल, टीवी, फिल्म और सैर-सपाटा बंद होना चाहिए। डॉ. आरती की नसीहत है कि प्रत्येक वर्ष नीट एग्जाम का पैटर्न neet pattern 2020 बदलता है, इसलिए ध्यान रखना चाहिए कि अमुक वर्ष में कैसा पैटर्न रहेगा। माइनस मार्किंग है तो सिर्फ उन्हीं सवालों के जवाब दें, जिसके बारे में श्योर हैं। तीसरी सलाह है कि नीट की तैयारी के समय बेसिक सब्जेक्ट यानी फिजिक्स, कैमेस्टि और बॉयोलॉजी पर विशेष ध्यान देना होता है। उन्होंने बताया कि अब नीट अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी भाषा में होता है, जल्द ही कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा होगी। चौथी बात कि नीट की तैयारी अथवा एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान टाइम मैनेजमेंट और एकाग्रता जरूरी है। छात्रों को अपनी पढ़ाई की मेज के सामने एक चार्ट बनाकर रखना चाहिए कि रोजाना कब-कब पढऩा है, किस टॉपिक को कितने दिन में खत्म करना है। अमुक-अमुक टॉपिक को दोहराना है। इसी के साथ कठिन टॉपिक के अलग से नोट बनाने चाहिए। पांचवी और अंतिम सलाह है कि पढ़ाई साफ-सुथरे और खुले हवादार स्थान पर करनी चाहिए। ऐसा करने से पढऩे में मन लगता है, याद भी ज्यादा होता है। सबसे खास यह कि बीमार नहीं होंगे। डाक्टर बनना है तो तैयारी के लिए पांच संकल्प लीजिए। यह संकल्प यह हैं :- 1- नियमित छह घंटे अध्ययन, पुराने पाठ्यक्रम को दोहराने की आदत, 2- सोशल मीडिया और सैर-सपाटे से दूरी जरूरी है, 3- नीट के पुरानी परीक्षााओं के पेपरों को सॉल्व करते रहना जरूरी है, 4- अपने लिए एक रूट प्लान तैयार कीजिए, कैसे-कहां और कब एडमिशन लेना है, 5- हाईस्कूल-इंटरमीडिट लेबल से मेडिकल प्रैक्टिशनर से मिलते रहिए, टिप्स लीजिए
रास्ते और भी तमाम हैं, यहां मंदी नहीं है मेडिकल प्रोफेशन में सिर्फ डाक्टर बनना ही एकमात्र विकल्प नहीं हैं। किसी कारणवश नीट को क्वालिफाई नहीं कर पाए तो माइक्रो बायोलाजी, बायो टेक्नोलाजी के साथ-साथ डेंटिस्ट, फार्मासिस्ट, नर्सिंग, आप्टोमिस्ट में करियर बना सकते हैं। मेडिकल प्रोफेशन की सबसे खास बात यह है कि यहां मंदी नहीं आती। आबादी की बाढ़ के साथ-साथ डाक्टर्स की जरूरत बढ़ी है। ऐसे में एक मेडिकल प्रोफेशनर कभी खाली नहीं बैठेगा। मंदी के दौर में इंजीनियर और अन्य नौकरीपेशा पर छंटनी का खतरा मंडरा सकता है, लेकिन डाक्टर्स पर नहीं। मेडिकल लाइन में सर्वाधिक सेलरी वाली जॉब है। यहां नए डाक्टर्स को तीस हजार रुपए महीना मिलता है, जबकि अनुभव और काबिलियत बढऩे पर दो लाख रोजाना तक कमाई संभव है। आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2016 से 2026 तक 18 फीसदी की ग्रोथ रहेगी, यानी 25 लाख नए जॉब अवसर प्राप्त होंगे।
मेडिकल कॅरियर में चार्म है, सामाजिक पहचान बनती है मेडिकल प्रोफेशन में पैसा मायने नहीं रखता है। उदाहरण हैं कानपुर के प्रख्यात डॉ. अजीत मोहन चौधरी। डॉ. चौधरी का लालबंगला इलाके में सरल नर्सिंग होम है। बावजूद वह रोजाना अपने घर के करीब कचेहरी के पास चेतना चौराहे पर मंदिर के बाद फुटपाथ पर बैठकर रोजाना दो घंटे मरीजों का मुफ्त में इलाज करते हैं। सामाजिक जिम्मेदारी को निभाने के लिए डॉ चौधरी का यह तरीका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचा तो उन्होंने मन की बात में डॉ. चौधरी का उल्लेख किया और उनके साथ टेलीफोनिक संवाद भी किया। डॉ. चौधरी और मेडिकल कालेज की प्रिंसिपल डॉ. आरती लालचंदानी ने कहाकि डाक्टर बनना तो पैसे के पीछे मत दौड़े। यहां तो समाज सेवा का असली सुख मिलता है। डाक्टर्स ने कहाकि एक मरीज को नई जिंदगी देने के बाद जो सुकून मिलता है, उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। डॉ. लालचंदानी जोर देकर कहती हैं कि कितना भी बड़ा धन्नासेठ हो, लेकिन डाक्टर्स ने उसकी जिंदगी बचाई है तो वह यह अहसान लाखों-करोड़ों देकर भी नहीं चुका सकता है।