यह कोई पहला मामला नहीं है जब मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक पर सवाल उठे हों। इससे पहले भी कई बार खून की दलाली का खेल खुल चुका है, पर कड़ी कार्रवाई न होने के चलते दलाल हमेशा बचते रहे। मई २०१४ में खूल की दलाली करने वाले सात गिरफ्तार किए गए। जून २०१४ में फिर तीन गार्ड पकड़े गए। जून २०१७ में तीन दलाल पकड़े गए और नवंबर २०१८ में भी दलालों को गिरफ्तार किया गया, पर सब बाद में छोड़ दिए गए।
ब्लड बैंक के पास अवैध रूप से खड़े होने वाले एंबुलेंस चालक भी संदेह के घेरे में हैं। इस खेल में इनकी बड़ी भूमिका रहती है। इनके गुर्गे ग्रामीण इलाकों में फैले होते हैं और गंभीर स्थिति वाले मरीज को फंसाकर ये लोग नकली खून बेच देते हैं। शहर के प्राइवेट अस्पतालों में भी इनका नेटवर्क फैला हुआ है, जहां पर ये लोग नकली खून की सप्लाई करते हैं।
शहर में मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध अस्पतालों के अलावा प्राइवेट अस्पताल भी मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक पर भरोसा करते हैं। यहां के ब्लड को सबसे सुरक्षित माना जाता है, लेकिन सख्ती में ढिलाई और लापरवाही के चलते दलालों ने यहां भी अपना जाल फैला लिया है। बार-बार मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक से जुड़े खुलासे होने से इसका भरोसा भी खतरे में पड़ गया है। इसे लेकर मेडिकल कॉलेज प्रशासन कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है।