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कानपुर

इस दृष्टिहीन परिवार की अजब कहानी, आंखों में नहीं रोशनी फिर भी दूसरे घरों में फैलाती हैं उजाला

घर की आर्थिक स्थिति ऐसी कि अगर उन्हें सुबह का भोजन मिल गया तो शाम का भरोसा नहीं कि मिलेगा भी या नहीं मिलेगा।
 

कानपुरMay 10, 2018 / 02:43 pm

Ashish Pandey

Divyang Rasulan Communal Harmony
कानपुर देहात. इंसानियत से बड़ा धर्म इस दुनियामें कोई नहीं है। जब खुद की जिंदगी में चारो तरफ अंधेरा होता है तो इंसान खुद में टूटकर बिखर जाता है, लेकिन इस सच को गलत साबित करके दिखाया है रसूलाबाद तहसील के कहिंजरी की रसूलन ने। दृष्टिहीन रसूलन ने इस जहां की रोशन दुनिया तो नहीं देखी, लेकिन दूसरे के घरों की लालटेन चार्ज करके उनके घर में उजाला जरूर करती हैं और इसी से पूरे परिवार का भरण पोषण भी करती हैं। सबसे अहम बात तो ये है कि कुदरत का ऐसा करिश्मा कि अपने 8 भाइयों में सबसे बड़ी रसूलन के चार भाई भी जन्म से दृष्टिहीन हैं, जिससे उसके कंधों पर पूरे घर का भार है। दृष्टिहीन होने व पारिवारिक खर्चे का बोझ होने के बावजूद रसूलन ने हिम्मत नहीं हारी और गांव के लोगों की लालटेन चार्ज करके परिवार का गुजारा कर रहीं हैं। बचपन से ही संघर्षों से गुजर रही रसूलन का कहना है कि वह मंदिर में भगवान की पूजा करती हैं और मस्जिद में अल्लाह की इबादत। उसका मानना है कि सभी जगह उसी का वास है, जिसका धर्म से वास्ता नहीं बल्कि इंसानियत से नाता है।
घर के हालात खराब फिर जज्बा नहीं कम

रसूलाबाद कस्बे के भीखदेव कहिंजरी गांव निवासी हफीज की आठ संतानों में सबसे बड़ी 30 वर्षीय बेटी रसूलन जन्म से ही आंखों से दिव्यांग हैं। आठ भाइयों में चार भाई गोरे, सब्बीर, चांद बाबू व अरमान भी जन्म से दृष्टिहीन हैं। घर की आर्थिक स्थिति ऐसी कि अगर उन्हें सुबह का भोजन मिल गया तो शाम का भरोसा नहीं कि मिलेगा भी या नहीं मिलेगा। लेकिन हिम्मत और हौंसला रखने वाली रसूलन का ईश्वर पर विश्वास में कमी नहीं आई। आंखों में रोशनी न होने के बाद भी उसने अपना विश्वास कम नहीं होने दिया। रसूलन कहती हैं कि भगवान व खुदा में क्या फर्क सभी जानते हैं, लेकिन इसके बाद भी निजी स्वार्थ के लिए धर्म के नाम पर लोग नफरत घोल रहे हैं। वह आज भी सभी धर्मों को समान इज्जत देती हैं। चाहे रमजान हो या नवदुर्गा। रमजान में रोजा रखती हैं तो नवदुर्गा में मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाती हैं।
पिता हफीज भी मंदिर में चढ़ाते हैं प्रसाद

समाज में धर्म के नाम पर लोग जहर घोलते हैं लेकिन धर्म से आगे क्या है, ये रसूलन के परिवार से सीखने को मिलता है। रसूलन के पिता हफीज हर शनिवार को शनिदेव मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाते हैं। बताते हैं कि 25 साल पूर्व पुत्र गोरे के जन्म के दौरान उसकी हालत बहुत बिगड़ गई थी। डाक्टरों ने जवाब दे दिया था। तब पुत्र को कानपुर पनकी मंदिर ले गये थे। वो बताते हैं कि वहां का प्रसाद खाने के बाद उसकी हालत में सुधार होने लगा। तभी से भगवान के प्रति आस्था बढ़ गई। प्रत्येक शनिवार को शनिदेव के मंदिर के साथ ही स्थानीय कालेश्वर मंदिर भी जाता हूं।
सरकार की योजनाओं से कोई लाभ नहीं

गरीबों के उत्थान के लिए सरकार की तमाम कल्याण कारी योजनाएं चल रही हैं, लेकिन इसके बाद भी हाफिज का परिवार उन योजनाओं से आज भी महरूम है। हाफिज के 8 बच्चों सहित दस सदस्यीय परिवार आर्थिक तंगी में गुजर बसर कर रहा है। घर के पांच सदस्य दृष्टिहीन होने के बाद भी इन्हें सरकार की ओर से किसी भी योजना का लाभ नहीं दिया गया है। हाफिज बताते हैं कि बच्चे जहां मांग कर काम चलाते हैं वहीं वह मजदूरी व पानी बेंचकर गुजर बसर कर रहे हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए श्रमिक भारती संस्था ने आठ साल पूर्व रसूलन को लालटेन चार्जिंग के लिए पैनल दिया था, जिससे कुछ कमाई हो जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे वह खराब होने लगी। वर्तमान समय में रसूलन के पास महज 20 लालटेन हैं, प्रत्येक लालटेन का चार्ज वह 50 रुपये लेती हैं, जिससे वह घर का गुजर बसर करती हैं।

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