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कानपुर

इस सप्ताह नहीं कर पाएंगे शुभ काम, ये है इसकी वजह, सतयुग से चली आ रही प्रथा

इस अवधि में भोग से दूर रहकर समय गुजारना होगा। इस अवधि में तप करना ही अच्छा माना जाता है।

कानपुरMar 15, 2019 / 05:15 pm

Arvind Kumar Verma

holashtak

इस सप्ताह नहीं कर पाएंगे शुभ काम, ये है इसकी वजह, सतयुग से चली आ रही प्रथा

कानपुर देहात-रंग बिरंगे होली पर्व को लेकर जितना उत्साह लोगों में देखा जाता है। दरअसल हिंदू धर्म मे दीवाली व होली जैसे बड़े पर्व को बड़ी मान्यता दी जाती है। लोग पूरे वर्ष शुभ व अशुभ अवधि को बराबर महत्व देते हैं। ऐसा ही कुछ होली के पूर्व सप्ताह में हो रहा है, जिसमें होलाष्टक होने से शुभ कार्यों पर विराम रहेगा। जिसे अशुभ माना जाता है। बताया गया कि फाल्गुन शुक्लपक्ष अष्टमी 14 मार्च से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 21 मार्च तक होलाष्टक रहेगा। इस अवधि में भोग से दूर रहकर समय गुजारना होगा। इस अवधि में तप करना ही अच्छा माना जाता है। लोग इस मान्यता को भक्त प्रह्लाद से जोड़कर चलते हैं। इसलिए इसे भक्त प्रह्लाद का प्रतीक माना जाता है।
इसकी भी एक प्राचीन कहानी है। दरअसल सतयुग में हिरण्य कश्यप ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान पा लिया था। मान्यता के अनुसार हिरण्य कश्यप पहले विष्णु का जय नाम का भक्त था, लेकिन शाप की वजह से दैत्य के रूप में उसका अगला जन्म हुआ था। वरदान मिलने के बाद उसके अहंकार में चूर हिरण्यक कश्यप ने इंद्रलोक के देवताओं सहित सबको हरा दिया। ऋषि मुनि त्राहि माम कर उठे थे। इस दैत्यराज के नाम से ऋषि कांप उठते थे। उधर भगवान विष्णु ने अपने भक्त के उद्धार के लिये अपना अंश उसकी पत्नी कयाधु के गर्भ में पहले ही स्थापित कर दिया था, विष्णु की कृपा से जब कयाधु ने एक बालक को जन्म दिया, जो प्रह्लाद के रूप में पैदा हुए। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु के गुणगान करने लगे।
भक्त प्रह्लाद का विष्णु का उपासक होना पिता हिरण्यक कश्यप को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। इस बीच दूसरे बच्चों पर प्रह्लाद की विष्णु भक्ति का प्रभाव पड़ता देख पिता को लगा कि दैत्यराज में विष्णु का नाम कोई नही ले सकता, मैं ही भगवान हूँ, हिरण्य कश्यप को अभिमान ने जकड़ लिया था। इस पर पहले तो पिता हिरण्यक कश्यप ने उसे समझाया। फिर भी प्रह्लाद के न मानने पर उसे विष्णु भक्ति से रोकने के लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन उसे बंदी बना लिया था। फिर भी प्रह्लाद के मुख से विष्णु जाप नही गया तो पिता ने उसे जान से मारने के लिए यातनाएं दीं, लेकिन प्रह्लाद विष्णु भक्ति के कारण भयभीत नहीं हुए और विष्णु कृपा से हर बार बच गए। यही मान्यता है कि प्रह्लद के इस यातना अवधि के चलते लोग होलाष्टक को अशुभ मानते है। अंत मे हिरण्य कश्यप का अत्याचार बढ़ने पर भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लेकर हिरण्य कश्यप का अंत कर दिया।
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