कई पीढ़ियों से करते आ रहे फूलों की खेती
महाराजपुर थाना क्षेत्र के रूमा गांव में 100 परिवार रहते हैं, जो पिछले सौ साल से ज्यादा समय से फूलों की खेती कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते आ रहे हैं। कोरोना वायरस के डंक से लोगों को बचाने के लिए सरकार को देश में लाॅकडाउन लगाना पड़ा। जिसके कारण इन सौ परिवार के किसानों की कमर तूट गई। किसान शिवनारायण कुशवाहा बताते हैं कि उनके बाबा फूलों की खेती किया करते थे। फिर पिता ने फूलों को संवारने का जिम्मे उठाया। उनके निधन के बाद हम हर तरह के फूलों की फसल तैयार कर देश के कई राज्यों में बिक्री के लिए भेजने लगे।
4 माह में तैयार होती फसल
शिवनारायण कुशवाहा बताते हैं अन्य फसलों के मुकाबले फूलों की फसल में मेहनत के साथ लागत ज्यादा आती है। एक बीघे की फूल की फसल में करीब 10 से 15 हजार रूपए खर्चा आता है। माह में कईबार पानी और खाद के साथ खरपतवार की सफाई करनी पड़ती है। बाहर से मजूदर बुलाने पड़ते हैं। किसान के मुताबिक फूलों की फसल चार माह में तैयार हो जाती है और फिर इन्हें तोड़कर हम मंडी तक ले जाते हैं। वहां से दूसरे राज्यों के व्यापारी खरीदकर ले जाते हैं।
18 बीघे में उगाई फसल
शिवनारायण कुशवाहा ने बताया कि हमारे गांव के किसानों ने 18 बीघे में फूलों की खेती तैयार की। जिसकी करीब 5 से 7 लाख रूपए लागत आई। हम अपनी सारी जमा पूंजी लगा दिया और अनुमान था कि पिछले साल की तरह इस वर्ष भी 20 से 25 लाख रूपए का मुनाफा होगा। पर कोरोना रूपी आतंकी ने हमारी मेहनत पर पानी फेर दिया। लाॅकडाउन के कारण फसल को मंडी तक नहीं पहुंचा सके। पांच दिन पहले कुछ व्यापारी गांव आए थे और उन्होंने औने-पौने दामों में फूल खरीदना चाहा। कुछ किसानों ने तो बेंच दिया पर हमनें उन्हें तोड़कर खेतों पर डाल दिया।
20 से 25 करोड़ का कारेाबार
किसान ने बताया कि दिल्ली में फूलों की सबसे बड़ी मंडी है। इस मंडी में देश-विदेश के फूल व्यापारी खरीद-फरोख्त करते हैं। कानपुर का फूल भी दिल्ली ही जाता था, पर इसवर्ष जनपद के थोक व्यापारी घरों से बाहर नहीं निकले और फूलों की खरीदारी नहीं हो सकी। कानपुर में अकेले करीब 20 से 25 करोड़ रूपए के फूलों की खेती होती है। महाराजपुर के अलावा चैबेपुर, भीरतरगांव, घाटमपुर, नवरल सहित अन्य गांवों में फूलों की खेती किसान करते हैं।