मेहर वो रक़म है जो किसी लड़की का होने वाला शौहर लड़की तो तोहफे के तौर पे दिया करता है, लेकिन यह रक़म लड़की तय किया करती है। इस मेहर को न तो वापस लिया जा सकता है और ना ही माफ़ करने के लिए लड़की पे दबाव डाला जा सकता है। इस रक़म के निकाह के पहले अदा किया जाना चाहिए या फिर लड़की जैसी शर्त रखे उसके अनुसार अदा किया जाना चाहिए। लड़की अगर यह रक़म बाद में लेने के लिए तैयार अपनी मजऱ्ी से है तो ठीक वरना अगर लड़की मना कर दे तो इस रकम को अदा किये बिना आप उसके साथ शौहर बीवी की हैसियत से नहीं रह सकते।
मुस्लिम समाज के अमीर परिवारों में सोना देने का चलन शुरू हुआ है। ये लोग बीबी को मेहर की रकम के बदले उतनी या उससे ज्यादा राशि का सोना दे देते हैं। उनके लिए यह बड़ी बात नहीं, वे मेहर के नाम पर सोना देकर रस्म भी पूरी कर देते हैं और बीबी उसके जेवर पहनकर खुद उसकी मालकिन बन जाती है।
निकाह के दौरान लड़के वाले लड़की के लिए सोने के जेवर लेकर जाते हैं। सोना देने का चलन शुरू होने के बाद कई लोग इसी जेवर के बराबर वजन का सोना मेहर के नाम पर तय कर देते हैं। इससे इन्हीं जेवरों को देकर वे मेहर की रस्म पूरी करा देते हैं और अलग से उन्हें कोई धनराशि नहीं देनी होती है। आल इंडिया मुस्लिम महिला फरजाना बेगम बताती हैं कि मेहर में शौहर अगर नगद के बजाय सोना दे रहा है तो कोई हर्ज नहीं पर वह सोना दिए जा रहे जेवरों से अलग होना चाहिए।